पत्र क्रमांक-१०२
१०-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
धर्म संस्कृति अध्यात्म भाषा साहित्य के श्रेष्ठ शिक्षक आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी की सम्यग्ज्ञानमयी शिक्षा को त्रिकाल कोटि-कोटि वन्दन नमन अभिनन्दन...
नसीराबाद में मुनि दीक्षा की शिक्षा-की कक्षा
हे गुरुवर! आपने वसुन्धरा में सर्व प्रिय दर्शनीय, मूलाचार के श्रमण, समाज एवं राष्ट्र की अनुपम निधि, श्रमण संस्कृति उन्नायक, साधक शिष्य को पहचाना एवं उसे कुन्दकुन्द की परम्परा का निर्वहन करने के लिए योग्य संस्कार दिए और भविष्य में संघ को चलता-फिरता गुरुकुल बनाने की प्रेरणा दी तथा उसकी कार्यान्विति के लिए पग-पग पर सूत्र दिए उसी कड़ी के अन्तर्गत ०७-०२-१९६९ को मुनि एवं ऐलक दीक्षा देना सिखाया। इस सम्बन्ध में मुझे नसीराबाद के आपके अनन्य भक्त श्री चेतन सेठी, श्री प्रदीप गदिया, नरेन्द्र सेठी आदि ने चित्र दिखाए जिसमें आपकी ज्ञानदृष्टि, भविष्य के सूरि नवोदित मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज को दीक्षार्थी के केशलोंच संस्कार आदि सिखा रही है।
नसीराबाद के ज्ञात इतिहास में यह प्रथम जैनेश्वरी दीक्षा होने जा रही थी। इस कारण दिगम्बर जैन समाज नसीराबाद में अत्यधिक उत्साह था और समाज बढ़-चढ़कर के इस महोत्सव को मनाना चाह रही थी। जिस तरह से मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा अजमेर में हुई उसी तरह का महोत्सव नसीराबाद में भी हो इसके लिए निर्देशन किससे लें? आप तो अध्यात्म शिखर पर विराजमान थे। आप तक पहुँचना सबके वश की बात नहीं थी अतः समाज के युवाओं ने संघस्थ मुनिराज श्री विद्यासागर जी महाराज को जो युवाओं के चहेते मुनिराज थे उन्हें इस महोत्सव का निर्देशक बना लिया। तब नवोदित मुनिराज श्री विद्यासागर जी ने दीक्षा लेने के बाद निजज्ञानचक्षुओं से जगत् को देखा, अनुभव किया कि सुख किसमें है? दु:ख किसमें है? बस इस संवेदन को दुनिया भी जाने और संवेदित हो तथा परम सुख का पुरुषार्थ करें, अतः वैराग्य के इस प्रसंग को सब लोग देखें इस परम करुणाभाव से निर्देशन किया।
हे गुरुवर ! इस सम्बन्ध में मुझे नसीराबाद के ताराचंद जी सेठी, सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी ने १५-१२-२०१५ को जो बताया वह मैं आपको बता रहा हूँ, जिसे आप पढ़कर वात्सल्यमयी आनन्द से भर उठेंगे-
मुनि श्री विद्यासागर जी बने दीक्षा महोत्सव के निर्देशक
"२९ जनवरी १९६९ को नसीराबाद में गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने श्री लक्ष्मीनारायण ब्रह्मचारी जी को मुनिदीक्षा देने की घोषणा की तब हम लोगों ने दीक्षा महोत्सव को भव्य विशाल आकर्षक रूप से मनाने के लिए विचार किया समाज के लोग और युवाओं ने मिलकर तैयारियाँ कीं और इस महोत्सव को सात दिन पूर्व से ही मनाना प्रारम्भ किया। हम सभी युवा लोग मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के पास गए और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। तब सात दिन तक क्या कैसा करना है, कैसे बिन्दौरियाँ (जुलूस) निकालना हैं, कौन सा विधान करना है? इन सब का मार्गदर्शन मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज से प्राप्त करते थे। उन्होंने ही हम लोगों को तरह-तरह की झाँकियों के बारे में बताया था। वे हम लोगों को बहुत उत्साहित करते थे। वे कहते थे-‘‘मोक्षमार्ग की प्रभावना करने में बहुत बड़ा पुण्य है। इससे भव्य आत्माओं में दीक्षा के प्रति सद्भाव पैदा होता है, लगाव पैदा होता है और वैराग्य पैदा होता है। दीक्षा लेना पलायन नहीं है यह तो आत्म उन्नयन का पुरुषार्थ है।'' इस तरह मुनिश्री विद्यासागर जी के निर्देशन में दीक्षा समारोह महाप्रभावना के साथ सानन्द सम्पन्न हुआ था।''
इस प्रकार आपके अन्तेवासी प्रिय शिष्य मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का साधर्मी मुमुक्षु के प्रति कितना वात्सल्य भाव एवं मोक्षमार्ग के प्रति कितना समर्पण भाव और धर्म की प्रभावना का कितना अन्तरंग निर्मल भाव था, वह आज तक हम लोग देख रहे हैं। ऐसे वैरागी शिष्य के चरणों में नमोऽस्तु करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य