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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 194 - अंतरंग-बहिरंग प्रबंधक : निर्यापकाचार्य

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१९४

    ०४-०५-२०१८

    ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

    मृत्यु का साक्षात्कार करने वाले साहसी दादागुरु परमपूज्य क्षपकशिरोमणि श्री ज्ञानसागर जी महामुनिराज के चरणों में त्रिकाल त्रिभक्तिपूर्वक नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु... हे गुरुवर! आपके प्रिय निर्यापकाचार्य मेरे गुरुवर एक अच्छे प्रबंधक के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। एक तरफ आपके अंतरंग भावों का प्रबंधन दूसरी तरफ समाधि के पश्चात् का बाह्य प्रबंधन। आपकी समाधि के बाद सामाजिक क्या स्थिति बनी? इस सम्बन्ध में मुझे नसीराबाद के २-३ लोगों ने आँखों देखा वर्णन बताया, जिसे बताने में मुझे गौरव का अनुभव हो रहा है। श्री ताराचंद जी सेठी सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी ने १५-१०-२०१५ भीलवाड़ा में बताया-

     

    अंतरंग-बहिरंग प्रबंधक : निर्यापकाचार्य

    “आचार्यश्री जी सुबह-दोपहर-शाम आवश्यकतानुसार वैयावृत्य करते सुबह और दोपहर में शास्त्र स्वाध्याय सुनाते। शाम को प्रतिक्रमण सुनाते, समयानुसार स्तोत्र, भक्तियाँ सुनाते । प्रतिदिन गुरुजी की आहारचर्या कराते, उसके बाद स्वयं आहार करते और समाधि होने से काफी दिन पूर्व ही बता दिया था कि किस दिशा में-कहाँ पर और कैसे दाह संस्कार किया जायेगा। वैकुण्ठी कैसी होनी चाहिए इसका भी निर्देशन पहले ही दे दिया था। दिनांक ०१-०६-७३ को सुबह १०:५० बजे गुरुवर ने अन्तिम श्वांस ली और समाचार फैल गए। तत्काल नसीराबाद का बाजार बंद हो गया। घण्टे-दो घण्टे के भीतर ही लोगों का आना चालू हो गया। नसियाँ जी के चौक में अन्तिम दर्शन के लिए क्षपकराज को वैकुण्ठी में बाहर विराजमान कर दिया गया था। जैन-अजैन लोगों का अन्तिम दर्शन के लिए तांता लग गया। दोपहर में अन्तिम यात्रा का भव्य जुलूस निकाला गया। जिसमें अजमेर का प्रसिद्ध अजंता बैण्ड को बुलाया गया था। अजमेर, किशनगढ़, ब्यावर, केकड़ी, सरवाड़, पीसांगन, दादिया, मोराझड़ी, दूदू, मौजमाबाद, झाग, चुरु, फुलेरा, किशनगढ़-रैनवाल, मारौठ, कुचामन, दांता, सीकर आदि स्थानों के भक्तलोग उस अन्तिमयात्रा में सम्मिलित हुए, लगभग २०-२५ हजार जैन-अजैन जन समुदाय जयकारे करते हुए चल रही थी। शाम को ४ बजे ऑल इण्डिया रेडियो पर अजमेर के सम्पादक श्री गुप्ता जी ने समाधि के बारे में २० मिनिट तक विस्तृत समाचार दिए और दूसरे दिन मृत्युंजयी ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि एवं उनके व्यक्तित्व-कृतित्व के बारे में अखबारों में समाचार प्रकाशित हुए।

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    इसी प्रकार नसीराबाद निवासी अजमेर प्रवासी माणिकचंद जी गदिया एडव्होकेट के सुपुत्र अनिल गदिया ने भीलवाड़ा में बताया-

     

    गुरु की अन्तिम यात्रा में सम्मिलित हुआ आचार्य संघ

    “गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि होने के बाद नसीराबाद का सकल नागरिक अन्तिम यात्रा की शोभा में सम्मिलित हुआ था। बीसों गाँव-नगरों से लोग एकत्रित हुए थे। लगभग २०-२२ हजार लोग जब सड़क पर चल रहे थे। तो कहीं निकलने की जगह ही नहीं बची थी। वैकुण्ठी का जुलूस ताराचंद जी सेठी की नसियाँ से भोजराज जी वकील की नसियाँ के बाजू में खाली स्थान तक गया था। उस जुलूस में आचार्य श्री विद्यासागर जी, ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक स्वरूपानंदसागर जी भी सम्मिलित हुए थे। वहाँ पर आचार्यश्री जी ने शास्त्रोक्त भक्तियाँ पढ़ी और फिर नमोऽस्तु करके चले गए। तत्पश्चात् चंदन की लकड़ियों की चिता पर पार्थिव शरीर को विराजमान किया गया और लगभग सभी लोगों ने १-१, २-२ श्रीफल चढ़ाये जिससे श्रीफल का पहाड़ बन गया। फिर पण्डित चंपालाल जी ने सामाजिक दृष्टि से दाहसंस्कार के क्रिया-कलाप कराये और सभी लोगों ने परिक्रमा दी।''

     

    मुखाग्नि किसने दी

    प्रश्न खड़ा होता है कि मुखाग्नि किसने दी? इसकी खोजबीन करते हुए वर्षों हो गए किन्तु समाधान मिला २०१६ ब्यावर में पधारे देवघर-झारखण्ड के ताराचंद जी जैन छाबड़ा (अध्यक्ष-झारखण्ड राज्य, दिगम्बर जैन धार्मिक न्यास बोर्ड) जो गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के गृहस्थावस्था के छोटे भाई के बेटे हैं उनसे, उन्होंने बताया-

     

    “ज्ञानसागर जी महाराज की समाधि से दो दिन पूर्व मेरे ताऊ गंगावगस जी और उनके बेटे महावीर कुमार जी छाबड़ा सपत्नीक पहुँच गए थे। उन्होंने ही मुखाग्नि दी थी।इसी प्रकार नसीराबाद के सुमेरचंद जी सेठी ने बताया-

     

    “उस दिन अजैन समाज ने भी पूरा सहयोग प्रदान किया था। दाह संस्कार के बाद लगभग १५२० हजार लोगों के भोजन की व्यवस्था नसीराबाद जैन समाज ने की थी और सड़क पर ही दोनों तरफ पंक्तिबद्ध लोगों को बैठाकर भोजन कराया था। कुछ दिन बाद में समाज ने वह दाह संस्कार वाली जमीन अपने नाम अलॉट करवाकर वहाँ पर आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज की समाधिस्थली बनायी।''

     

    इस तरह हे गुरुवर! आप कृतकृत्य हो गए। इस मनुष्य जीवन का जो सदुपयोग करना चाहिए, वह आपने किया और निश्चित ही इस संसार को २-३ भव तक सीमित कर दिया होगा। आपके इस | महापुरुषार्थ को कोटि-कोटि नमन करता हूँ और भावना भाता हूँ कि आपका ऐसा भावाशीष हम शिष्यानुशिष्य को प्राप्त हो कि हम भी आपकी तरह पुरुषार्थ कर आपके पीछे-पीछे सिद्धालय में जा विराजमान हों...

    आपका शिष्यानुशिष्य

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