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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 160 - मदनगंज-किशनगढ़ में अष्टाह्निका पर्व एवं पिच्छिका-परिवर्तन

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक-१६०

    १९-०३-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    निजत्व की भूमिका में प्रतिक्षण आत्मकेन्द्रित उपयोग के कर्ता परमपूज्य दादागुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में कोटिशः प्रणाम करता हुआ... हे गुरुवर ! मदनगंज-किशनगढ़ चातुर्मास सानंद सम्पन्न हुआ। समापन के अवसर पर श्रावकों ने अपनी आत्मविशुद्धि बढ़ाने हेतु सिद्ध परमेष्ठियों की आराधना करना चाही, तो उन्हें आपकी अस्वस्थता को देखते हुए आपसे निवेदन एवं आशीर्वाद पाने में संकोच हुआ और मुनि श्री विद्यासागर जी से निवेदन किया। तब मुनि श्री विद्यासागर जी की दूरदर्शिता, विनयशीलता, लघुता और शिष्यता देखते ही बनती थी। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया-

     

    शिष्य की भूमिका को पहचानते : विद्यासागर

    १८ अक्टूबर कार्तिक वदी चतुर्दशी को वार्षिक प्रतिक्रमण गुरुवर के साथ में पूरे संघ ने किया एवं कार्तिक वदी अमावस्या को भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव ससंघ सान्निध्य में मनाया गया। कार्तिक वदी अमावस्या के दिन मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के पास समाज के प्रतिनिधि गए और समाज की ओर से श्रीफल चढ़ाकर निवेदन किया कार्तिक की अष्टाह्निका में २६ अक्टूबर से ०२ नवम्बर तक सिद्धचक्र महामण्डल विधान आपके सान्निध्य में करना चाहते हैं। तब मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज बोले-गुरु महाराज से निवेदन करो, वे आचार्य महाराज हैं। तब समाज ने कहा-आचार्य महाराज का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। अतः आप आशीर्वाद प्रदान करावें। तब विद्यासागर जी महाराज बोले-आप श्रावक लोग गुरु महाराज को अपनी ओर से निवेदन करें वे संघनायक हैं। मैं इस कार्य का निवेदन नहीं कर सकता। इस तरह वे कभी भी समाज के बीच में नहीं पड़ते थे और न ही संघ का नेतृत्व करते थे। विद्यासागर जी बड़े सरल थे। वे कभी भी सामाजिक राजनीति में नहीं पड़ते। वे अपनी शिष्य की भूमिका को पहचानते थे। तब समाज के प्रमुखों ने दो दिन बाद गुरु महाराज को निवेदन किया और ससंघ सान्निध्य में सिद्धचक्र महामण्डल विधान महत् प्रभावना के साथ सानंद सम्पन्न हुआ।'' 

     

    इस सम्बन्ध में अतिशय तीर्थक्षेत्र महावीर जी के पुस्तकालय से ‘जैन मित्र' एवं 'जैन संदेश' अखबार की कटिंग प्राप्त हुईं। जैन मित्र' १८ नवम्बर १९७१ गुरुवार को प्रकाशित वैद्य मन्नालाल पाटनी का समाचार इस प्रकार है| ‘मदनगंज-किशनगढ़-में अष्टाह्निका में सिद्धचक्र विधान आ. ज्ञानसागर जी के तत्त्वावधान में पं. हेमचंद जी शास्त्री अजमेर के हस्त से हुआ था, विशाल रथयात्रा निकली थी। उसमें ४५००/- आय हुई थी उसमें ३३५१/- तो भंवरलाल रतनलाल पाटनी खंडाच के थे। प्रीतिभोज भी हुआ था व आचार्य श्री एवं मुनि विद्यासागर जी के प्रवचन भी हुए थे तथा स्थानिक संगीत मण्डल ने मैनासुन्दरी नाटक खेला था। उसका उद्घाटन लादूलाल पहाड़िया ने करके १००१/- दिए थे तथा और भी ३०००/- करीब सहायता संगीत मण्डल को मिली थी। आचार्य ज्ञानसागर आदि का चातुर्मास पूर्ण हो विहार की क्रिया हुई थी व नवीन पिच्छिकाएँ बीजराज बाकलीवाल ने दी थीं।' इसी प्रकार ‘जैन सन्देश' में भी ०९-१२-१९७१ को वैद्य मन्नालाल के समाचार इस प्रकार प्रकाशित किए गए हैं-

     

    मदनगंज-किशनगढ़ में अष्टाह्निका पर्व

    ‘‘आष्टाह्निक पर्व में सिद्धचक्र मण्डल विधान दि. जैन आदिनाथ जैन मन्दिर जी में आष्टाह्निक पर्व में बृहद् सिद्धचक्र मण्डल विधान का आयोजन किया गया जिसका सभी कार्यक्रम अजमेर निवासी पं. हेमचंद जी शास्त्री के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। श्री १०८ आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का यहाँ चातुर्मास हो रहा है। संघ के समस्त त्यागीगणों के सान्निध्य में सभी विधान क्रियाएँ सम्पन्न होतीं थीं। आचार्यश्री के प्रिय शिष्य श्री १०८ विद्यासागर जी का नित्यप्रति बड़ा ही मार्मिक तात्विक भाषण होता था। रात्रि को शास्त्री जी शास्त्र पठन करते थे। पण्डित जी का भाषण भी तार्किक एवं रोचक पठन शैली से जनता में अच्छा आकर्षण व रुचिकर रहा । पूर्ण आहूति पर रथयात्रा का विशाल प्रोग्राम रहा।

     

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    इस प्रकार कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी के दिन पूरे संघ ने उपवास रखा और चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किया और उसी दिन पिच्छी परिवर्तन हुआ इसके बारे में रमेशचंद जी गंगवाल ने बताया-

     

    पिच्छिका-परिवर्तन

    “बीजराज जी बाकलीवाल ने आचार्य महाराज ज्ञानसागर जी को पिच्छिका भेंट की। उसके पश्चात् दूसरी पिच्छी भेंट की जिसे ज्ञानसागर जी महाराज ने मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को नवीन पिच्छी दी और पुरानी पिच्छी उनसे ली। इसी प्रकार संघस्थ क्षुल्लक ऐलक को भी गुरु महाराज ने पिच्छिका दीं और मुनि श्री विद्यासागर जी की पुरानी पिच्छी मदनगंज-किशनगढ़ के सेवाभावी भक्त सपत्नीक श्रीमान् दीपचंद जी चौधरी, सोहनी देवी चौधरी को दी। अन्य पिच्छियाँ भी समाज के सेवाभावी लोगों को प्रदान कीं।'' इस प्रकार मदनगंज-किशनगढ़ चातुर्मास ने स्वर्णिम इतिहास रच दिया। इसके साथ ही एक और इतिहास जुड़ गया जब दो मुनि संघों का मिलन हुआ। इस सम्बन्ध में दीपचन्द जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया-

     

    दो मुनि संघों का वात्सल्यमय मिलन

    जब गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज मदनगंज-किशनगढ़ में चातुर्मास कर रहे थे तब अजमेर में मुनि श्री महेन्द्रसागर जी संघ सहित चातुर्मास कर रहे थे। चातुर्मास समाप्त होने के बाद नवम्बर माह में मगसिर कृष्णपक्ष में मुनि श्री महेन्द्रसागर जी संघ सहित मदनगंज पधारे थे। गुरुदेव ज्ञानसागर जी जहाँ ठहरे हुए थे वहाँ पर उनका आगमन हुआ। मुनिवर श्री विद्यासागर जी महाराज, संघस्थ क्षुल्लक, ऐलक, ब्रह्मचारियों ने आगवानी की। आपस में नमोऽस्तु हुई। बड़ा ही वात्सल्य-विनय-आदर का वातावरण बन गया था। दोनों संघ स्वास्थ्य-रत्नत्रय की कुशलक्षेम पूछ-पूछकर प्रसन्नचित्त थे।

     

    फिर दोनों संघ मंचासीन हुए। मुनि श्री महेन्द्रसागर जी महाराज ने ज्ञानमूर्ति आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज का गुणानुवाद किया। दूसरे दिन मुनि श्री महेन्द्रसागर जी महाराज संघ सहित दूदू की ओर विहार कर गए। मदनगंजकिशनगढ़ में लोगों के मध्य आचार्य गुरुवर के त्याग-तपस्या, ज्ञान-ध्यान की महिमा की चर्चा होने लगी। ऐसे परम श्रद्धेय गुरुवर के चरणों में नमस्कार करता हुआ...

    आपका

    शिष्यानुशिष्य


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