पत्र क्रमांक-१३६
२०-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
हस्तावलम्बन दाता तारणहार दादा गुरुजी के पावन चरणों में प्रतिक्षण नमोऽस्तु करता हूँ... हे गुरुवर! आप मण्डा से मिण्डा गए फिर वहाँ से रेनवाल के लिए विहार किया। तब आपका स्वास्थ्य अनुकूल नहीं होने से और गर्मी की भीषणता के बावजूद आपने विहार कर दिया। उस समय का एक संस्मरण दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने सुनाया जिसे सुनकर मुझे अपने गुरु पर गौरव होता है और उसे सुनकर आप भी पुनः गौरव से भर उठेंगे-
शिष्य ने उठाया गुरु को पीठ पर
‘मिण्डा से जब गुरुदेव ने किशनगढ़-रेनवाल के लिए लगभग २५ जून को प्रातः विहार किया था और गुरुजी का स्वास्थ्य अनुकूल नहीं था। तब बीच में मेण्डा नदी पड़ी जो सूखी बालू-रेत की थी। जिस पर चलने से ताकत ज्यादा लगानी पड़ती है पैर धस जाता है और फिसलता भी है। ऐसी स्थिति में मुनि श्री विद्यासागर जी ने अपनी पीठ पर गुरुजी ज्ञानसागर जी महाराज को उठा लिया और दो-तीन कि.मी. तक ले गए थे। वहाँ पहुँचने पर मैंने मुनिवर विद्यासागर जी से कहा-आप थक गए होंगे आपके पैर दबा देता हूँ। तब मुनि श्री बोले-गुरु की सेवा में थकान कैसी?''
इस तरह मेरे गुरु ब्रह्मचारी अवस्था से ही गुरुओं की सेवा में तत्पर, लगनशील, समर्पित रहे। जब वे आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज के संघ में थे। तब ३० मार्च १९६७ को होने वाले गोम्मटेश्वर महामस्तकाभिषेक महोत्सव में आचार्य संघ जा रहा था, तब मार्ग में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज की पालकी भी ब्रह्मचारी विद्याधर जी उठाकर चलते थे।
हे दादागुरु! मेरे गुरुवर ने आपको नदी पार कराई आपने उन्हें संसार-सागर पार करा दिया। धन्य हैं! ऐसे तारक गुरु-शिष्य के पावन चरणों में कोटि-कोटि वंदन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य