पत्र क्रमांक-१३५
१९-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
वात्सल्य रत्नाकर परमपूज्य गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पवित्र चरणों में स्नेहिल नमस्कार नमस्कार नमस्कार... हे गुरुवर! मई के अन्तिम सप्ताह अन्तर्गत आप संघ सहित मण्डाभीमसिंह पहुँचे थे और वहाँ लगभग १ माह का आत्मविहार किया। मेरे गुरुवर साधना के साथ-साथ सेवा-स्वाध्याय में सदा तत्पर रहते। इसके बारे में मैं क्या-क्या बता पाऊँगा, फिर भी मेरे गुरुवर के बारे में कोई भी व्यक्ति संस्मरण सुनाता है तो मन पुलक-पुलक हो उठता है। मण्डाभीमसिंह प्रवास के तीन संस्मरण श्री दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने सुनाये। वे आपको भी बताने का मन हो रहा है-
गुरु-शिष्य एक दूसरे के हितचिंतक
“मई माह में अत्यधिक गर्मी पड़ रही थी दोपहर में तेज लपट चलती थी। आचार्य महाराज का स्वास्थ्य कमजोर हो जाता था तो मुनि श्री विद्यासागर जी के साथ हम भी आचार्य गुरुवर की वैयावृत्य करते थे और उनके पैरों में घी-कपूर की मालिश करते थे एवं रात में भी नित्य-प्रति वैयावृत्य करते थे। गर्मी को देखते हुए गुरुदेव इशारा करके कहते विद्यासागर जी की भी वैयावृत्य करो बहुत गर्मी है। तो हम लोग जैसे ही मुनि श्री विद्यासागर जी की वैयावृत्य करने की कोशिश करते तो वे मना कर देते और कहते- “मुझे जरूरत नहीं।' हम लोग निवेदन करते महाराज जी! गुरु महाराज की आज्ञा है। तो तत्काल कहते-‘गुरु महाराज की शीतल छाया में गर्मी कहाँ?' इस प्रकार गुरुदेव शिष्यों का पूरा-पूरा ख्याल रखते थे।'
भीषण गर्मी में भी स्वाध्याय तप में लीन
‘मण्डा में भीषण गर्मी में दोपहर में मुनि श्री विद्यासागर जी को गुरु महाराज स्वाध्याय कराते थे। उस स्वाध्याय में एक व्यक्ति आते थे। जो थे तो जैन किन्तु मुनियों को नमस्कार नहीं करते। इसके बावजूद गुरु महाराज उस व्यक्ति के कल्याणार्थ उस व्यक्ति के प्रश्नों का जवाब देते थे। वे कभी पूछते चौथे गुणस्थान में आत्मानुभूति, केवलज्ञान की किरण, तो कभी कहते व्रत औदयिक भाव है, पुण्य-पाप सब एक भाव हैं, काललब्धि जब आयेगी तो स्वत: पुरुषार्थ हो जायेगा, पंचमकाल में मुनि चर्या पालने वाले सच्चे मुनि नहीं आदि विषयों पर गुरुदेव आगम प्रमाण से तर्क-वितर्क करते हुए उदाहरण पूर्वक समझाते थे किन्तु पूर्वाग्राही, हठग्राही व्यक्ति को गुरु के आगमप्रमाणित वचन एवं तर्को, उदाहरणों को सुनकर आनन्द की अनुभूति नहीं होती अपितु अपूर्वग्राही-ज्ञानग्राही को गुरुमुख से सर्वज्ञवाणी को सुनकर आनन्द की प्राप्ति होती है। किसी को लाभ मिला या नहीं किन्तु हम संघस्थ साधकों को बहुत लाभ मिला। इस प्रकार वाचना-स्वाध्याय के साथ-साथ पृच्छना-स्वाध्याय का अपूर्व लाभ आपने दिया, संघ ने लिया।
गुरु भक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण
‘‘मण्डा की भयंकर गर्मी में भी गुरुवर एवं मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज कक्ष के अन्दर ही विश्राम करते थे। सन् १९६९ में हम संघ में आये तब से हमने देखा कि आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज, जहाँ पर रात्रि में सोते थे वहीं पर मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज भी चरणों के निकट सोते थे। मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज कभी भी उनके बराबर में नहीं सोये । हमेशा चरणों की ओर ही सोते थे। यह उनकी उत्कृष्ट गुरुभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण हमने अन्यत्र नहीं देखा । गुरुदेव रात्रि के तृतीय प्रहर अर्थात् ३ बजे उठ जाते थे और दिन में कभी लेटते नहीं थे। मुनि श्री विद्यासागर जी भी गुरुदेव के उठते ही उठ जाते थे और दिन में सोने का कोई प्रश्न ही नहीं था क्योंकि वे गुरुजी को छोड़कर अन्यत्र रहते ही नहीं थे। इस तरह गुरुवर आप साईटिका के रोग के कारण बाहरी तेज हवा से बचने के लिए भयंकर गर्मी में कक्ष के अन्दर ही रात्रि विश्राम करते थे, जबकि भयंकर गर्मी में शाम आठ बजे के बाद कक्ष भभका मारता है- घुटता है। फिर भी आपकी तपस्या का तो कारण समझ में आता है किन्तु मेरे गुरुवर भी इस परिस्थिति में बाहर विश्राम नहीं करते थे। आपके साथ ही ग्रीष्म परिषहजय करते थे। इसकी वजह सिर्फ आपके श्रीचरणों की भक्ति ही थी, जो गुरुचरणों में शीतलता की अनुभूति कराती और उनकी सेवा से एक पल भी दूर नहीं रहने देती थी। ऐसे वीतरागी चरण जिनसे राग हो जाता है। उनको त्रिकाल वंदन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य