पत्र क्रमांक-१२९
११-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
सम्यक्त्व विशुद्धिधारक आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महामुनिराज के चरणों में सम्यक्त्व विशुद्धिवृद्धिंगत हो इस हेतु त्रिकाल वंदना करता हूँ... हे गुरुवर! आपमें सम्यक्त्व का प्रभावना अंग फलता-फूलता सबको सुवासित करता। आपका सान्निध्य पाकर समाज धर्मप्रभावना का कोई भी अवसर चूकती नहीं थी। इस सम्बन्ध में श्रीमान् उम्मेदमल जी छाबड़ा दूदू ने बताया-
छोटे-छोटे गाँव में धर्म प्रभावना
आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज साली से साखून, पड़ासोली, रामनगर, हरसोली में प्रभावना करते हुए छप्या गए। छप्या में ६ घर की समाज की भक्ति ने १६ दिन रोका। वहाँ पर मन्दिर जी में नवीन वेदी बनकर तैयार थी। उस पर श्री जी को विराजमान करना था। तो समाज ने गुरुजी से निवेदन किया कि आपके सान्निध्य में वेदीप्रतिष्ठा करना चाहते हैं। तो गुरुजी ने आशीर्वाद प्रदान कर दिया। वेदीप्रतिष्ठा सानंद सम्पन्न हुई। संघ के सान्निध्य में जुलूस निकला, आस-पास की समाज आयी, प्रीतिभोज हुआ, प्रतिदिन तीनों महाराजों का प्रवचन होता और अच्छी प्रभावना हुई।
इसी प्रकार दूदू में भी संघ सान्निध्य में महाप्रभावना का इतिहास रचा गया। जिसे लोग आज तक भूले नहीं हैं। ज्ञानसागर जी महाराज छप्या से दूदू पधारे, तो ३५ घर की समाज ने भव्य आगवानी की लगभग १ माह का प्रवास रहा। होली के बाद दूसरे दिन मौजमाबाद की तरफ विहार कर गए थे। दूदू प्रवासकाल में दो जुलूस निकले और मुनि विद्यासागर जी एवं ऐलक सन्मतिसागर जी के केशलोंच की जानकारी २-३ दिन पहले हो जाने से चारों तरफ समाचार भेज दिया गया था। तो आस-पास के २५-३० गाँवों से बहुत अधिक भीड़ मुनि श्री विद्यासागर जी के केशलोंच देखने आयी। इससे पहले और भी साधुओं के केशलोंच हुए किन्तु इतनी भीड़ नहीं आयी, जितनी मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के केशलोंच देखने आयी । कारण कि बाल ब्रह्मचारी युवा मनोज्ञ मुनि घुंघराले काले बालों को कैसे उखाड़ते हैं यह कौतूहल का विषय होता था । १000-१२00 लोगों का उस दिन भोज हुआ था। यह केशलोंच समारोह राजकीय विद्यालय के मैदान में हुआ था। इस कारण अजैन जनता भी खूब आई थी।" इस कार्यक्रम की खबर को ‘जैन गजट' में १२ मार्च १९७० को प्रकाशित की गई। वह इस प्रकार है-
श्रद्धाञ्जलि दिवस एवं केशलोंच समारोह
“दूदू ग्राम में पूज्य आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागर जी महाराज का संघ सहित फाल्गुन ३ को २४ फर. मंगलवार को पदार्पण हुआ। तब से इस गाँव में महती धर्म प्रभावना हो रही है। पूज्य स्वर्गीय आचार्य प्रवर १०८ श्री शिवसागर जी महाराज का स्वर्गारोहण दिवस गत फाल्गुन कृष्णा अमावस्या ता. ७ मार्च १९७0 शनिवार उनके प्रथम शिष्य चारित्र विभूषण ज्ञानमूर्ति आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सान्निध्य में मनाया गया। सर्वप्रथम गाजे-बाजे के साथ श्री १००८ जिनेन्द्र भगवान की सवारी व पूज्य श्री का फोटो सहित जुलूस दिगम्बर जैन धर्मशाला में आया जहाँ पर पहले से ही चौसठ ऋद्धि मण्डल विधान पूजन का आयोजन था। पूजन के पश्चात् स्व. पूज्य आचार्य श्री को श्रद्धांजलि अर्पित की गई । ब्रह्मचारी श्री प्यारेलाल जी बड़जात्या अजमेर तथा बाल ब्रह्मचारी श्री दीपचंद जी ने आचार्य श्री के चरणकमलों में हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की। मुनिराज १०८ श्री विवेकसागर जी व १०८ श्री विद्यासागर जी के बाद पूज्य आचार्य श्री ने अपने गुरुवर्य के चरणारविंद में विनयपूर्वक हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित करते हुये उनके जीवन पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला।
फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा वी.सं. २४९६ रविवार ८ मार्च १९७० को ग्राम के बाहर बाल ब्रह्मचारी मुनिराज श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज व ऐलक श्री १०५ सन्मतिसागर जी महाराज जी का केशलोंच हुआ। जुलूस १००८ श्री जिनेन्द्र प्रभु के रथ में विराजमान कर विशाल पण्डाल में पहुँचा। पंडित श्री हीरालाल जी सिद्धान्त शास्त्री ब्यावर, पंडित चम्पालाल जी नसीराबाद व ब्रह्मचारी श्री दीपचंद जी आदि के भाषण हुए। तत्पश्चात् मुनिराज विद्यासागर जी का भाषण व अन्त में पूज्य आचार्य श्री का आशीर्वादात्मक प्रवचन होकर श्रीजी की सवारी गाजे-बाजे के साथ मन्दिरजी में पहुँची। बालकों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के लिए आचार्य श्री ज्ञानसागर दिगम्बर जैन पाठशाला की स्थापना की गई।
इस प्रकार मुनि श्री विद्यासागर जी का दीक्षोपरान्त ७वां केशलोंच महती प्रभावना के साथ सम्पन्न हुआ। हे गुरुवर! आप श्री का संघ जहाँ भी जाता वहाँ धर्म प्रभावना के साथ-साथ सम्यग्ज्ञान की प्रभावना भी होती जाती। दूदू में आपकी प्रेरणा से आचार्य श्री ज्ञानसागर दिगम्बर जैन पाठशाला में अध्यापन का कार्य मास्टर भंवरलाल जी बोहरा ने सम्भाला। दूदू प्रवास के दो संस्मरण और लिख रहा हूँ। जो मुझे दूदू के उम्मेदमल छाबड़ा जी ने १२-०२२०१८ को सुनाये-
मुनि श्री विद्यासागर जी ज्ञान का अवसर न चूकते
“आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज जब संघ सहित दूदू में प्रवास कर रहे थे। तब प्रतिदिन मैं रात्रि में वैयावृत्य के समय पर पुराने कवियों की जकड़ियाँ (भजन) सुनाया करता था। उनको विद्यासागर जी महाराज बड़े ध्यान से सुनते और प्रसन्न होते थे। जिन शब्दों का अर्थ उन्हें समझ में नहीं आता था तब दूसरे दिन सुबह जब मैं मन्दिर जाता, उन्हें नमोऽस्तु करता तो वे बड़े उत्साह के साथ उन शब्दों का अर्थ पूछते थे। इस तरह वे अपना हिन्दी का ज्ञान मजबूत बनाते रहते थे। पुराने कवियों में दौलतरामकृत, भूधरदासकृत, रामकृष्णकृत, जिनदासकृत आदि जकड़ियों को सुनाते थे।
मनोविनोदी मुनि श्री विद्यासागर
“एक दिन मुनि श्री विद्यासागर जी शाम की सामायिक खुले में कर रहे थे। उस समय शाम को ठण्डक हो जाया करती थी और ठण्डी हवा चला करती थी। तो दूसरे दिन हमने निवेदन किया-महाराज! अभी शाम को खुले में ठण्डक हो जाती है और जाती हुई ठण्ड से बचना चाहिए क्योंकि यह रोग का कारण होती है, ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।' तो हँसते हुए विद्यासागर जी बोले-' धनमाद्यं खलु गृहस्थधर्मसाधनम्।' यह सुनकर गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज को भी हँसी आ गयी।" इस प्रकार आपके लाड़ले शिष्य सतत ज्ञानार्जन में लगे रहते और उनका विकासशील ज्ञान उनके प्रवचन, तत्त्वचर्चा, व्यवहार में परिलक्षित होता। ऐसे ज्ञानी गुरु-शिष्य के चरणों में निज सम्यग्ज्ञान के विकास हेतु त्रिकाल वंदन करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य