पत्र क्रमांक-१२७
०९-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
जगत के आश्रयभूत आचरण के धारक आचार्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महामुनिराज के जगत्पूज्य चरणों में कोटिशः नमोऽस्तु करता हूँ... हे गुरुवर! आप सदा चारित्रधारी साधुओं की आठों शुद्धियों को चिन्तन-मनन-आचरण करते थे। आगम प्रणीत चारित्र में आपकी अटूट निष्ठा थी। इस सम्बन्ध में दूदू के उम्मेदमल जी छाबड़ा (मरवा) ने १२-०२-२०१८ को ज्ञानोदय में तीर्थ पर बताया-
छोटे-छोटे ग्रामों में प्रभावना
‘‘आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का जैसा नाम था वैसा ही काम था। वे मात्र शाब्दिक ज्ञान के धनी नहीं थे। वरन् भावज्ञान से ओत-प्रोत थे। यही कारण है कि उनका ज्ञान आचरण में बोलता था। विहार में भी अपनी चर्या-क्रिया में परिवर्तन नहीं करते थे। मरवा से विहार करके छोटा नरैना गए, वहाँ से साली ग्राम गए, साली में गुरुदेव ने ८ घर की समाज की भक्ति को देखते हुए १८ दिन का प्रवास किया। एक दिन भयंकर ठण्ड में भी केशलोंच किया तब मन्दिरजी में जैन-अजैन जनता समा नहीं रही थी और प्रतिदिन तीनों मुनिराजों के प्रवचन होते थे।" धन्य हैं आप गुरुवर! जो ऊपर से नारियल की तरह कठोर चर्या और भीतर से किसमिस की तरह मधुर व्यवहार करते। आपके पावन चरणकमलों की त्रिकाल वंदना करता हुआ...
आपका शिष्यानुशिष्य