पत्र क्रमांक-१२६
0८-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
श्रेष्ठ वंश के सुवंशज प.पू. दादागुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के जगत्पूज्य चरणों की त्रिकाल वंदना करता हूँ... हे गुरुवर ! जब आपने रूपनगढ़ से मरवा ग्राम की ओर विहार किया। तो समाचार द्रुतगति से फैल गया और तब मरवा में विचित्र स्थिति बन गई। इस सम्बन्ध में उम्मेदमल जी छाबड़ा (मरवा) दूदू ने १२०२-२०१८ को बताया। वह मैं आपको बता रहा हूँ-
ग्रामीण जनों ने की आगवानी
‘‘जैसे ही मरवा में समाचार मिला तब चार घर की जैन समाज ने आगवानी की तैयारी की। तो ग्रामीण लोगों में समाचार फैल गया-‘गाँव के हवेली वाले सेठ जी उदयलाल जी छाबड़ा के पुत्र लक्ष्मीनारायण जो दिगम्बर साधु बन गए हैं, वे आ रहे हैं। उनके गुरु महाराज भी आ रहे हैं।' तब ग्रामवासी भी ग्राम के बाहर एकत्रित हो गए। ढोल बजाते हुए, लोकगीत गाते हुए, नाचते हुए उन्होंने ग्राम में प्रवेश कराया। सभी ने संघ को साष्टांग प्रणाम किया। २-३ दिन के प्रवास में प्रतिदिन सुबह और दोपहर में प्रवचन होते ग्रामवासी भी सुनने आते। सुबह आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज का और दोपहर में मुनि विवेकसागर जी एवं मुनि विद्यासागर जी महाराज का प्रवचन होता था। प्रवचनों के प्रभाव से सभी ने अण्डा, मछली, मांस, नशा का त्याग किया।nप्रथम दिन पूरे संघ के छहों साधुओं का आहार हमारे घर (लक्ष्मीनारायण जी के घर में किशनगढ़ वालों ने चौका लगाया था) में हुआ था।"
इस प्रकार आपका संघ जहाँ भी जाता वहाँ पर धर्म संस्कार और प्रभावना की छाप छोड़ता। जिनका चरित्र दर्शकों के मन में श्रद्धा-विनय-भक्ति प्रकट करता । ऐसे चारित्र विभूषण गुरुवर की त्रिवेणी ज्ञानधारा को नमस्कार करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य