पत्र क्रमांक-१२२
०४-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
अध्यात्मवादी, आन्तरिक दृष्टिकोण, जीवित समयसार गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के चरणों में कोटिशः नमोऽस्तु करता हूँ...। हे गुरुवर! आप इतने निर्मोही थे कि आप अपने विशेष भक्त सर सेठ भागचंद जी सोनी, पं. विद्याकुमार जी सेठी, पं. हेमचंद जी शास्त्री, कजोड़ीमल जी अजमेरा आदि की भक्ति एवं निवेदन को तो गौण करते ही थे साथ में अपने शरीर के प्रति भी निरीह थे। आप न तो भयंकर गर्मी देखते और न भयंकर सर्दी अपितु आगम के अनुसार आहार-विहार-निहार-व्यवहार करते । मुझे दीपचंद जी (नांदसी) ने इस सम्बन्ध में १८-१२-१९६९ ‘जैन गजट' की एक कटिंग दी जिसमें प्रभुदयाल जी जैन का समाचार इस प्रकार छपा-
आचार्य संघ का विहार
अजमेर-श्री परमपूज्य १०८ आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज का १४-१२-१९६९ को रूपनगढ़ की ओर विहार हो गया। विहार के पूर्व श्री सेठ साहब भागचंद जी सा. सोनी की नसियाँ जी में जैन नरनारियों ने एकत्रित होकर आचार्य श्री के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित की आचार्य श्री जी के मार्मिक उपदेश के बाद लगभग १:३० बजे संघ का विहार हुआ। सभी जन समूह संघ के साथ ५ मील तक गया।'' इस तरह आप-‘बहता पानी रमता जोगी' की उक्ति को चरितार्थ करते हुए भक्तों के निवेदन को सुनकर मुस्कुराते हुए। दिसम्बर माह की कड़ाके की शीतलहर के बीच आगे बढ़ गए । निर्मोही, निर्बध को कोई नहीं बाँध सका। ऐसे अनियत विहारी के चरणों में कोटिशः नमन करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य