पत्र क्रमांक-१२१
०२-०२-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर
आगम चक्षुधारक परमपूज्य गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज की त्रिकाल वंदना करता हुआ... हे गुरुवर! सन् १९६९ केसरगंज अजमेर चातुर्मास ज्ञान-ध्यान-तपमय सानन्द सम्पन्न हुआ। चातुर्मास के अन्तिम चरण के बारे में दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने बताया-
भगवान महावीर का मनाया निर्वाण महोत्सव
‘कार्तिक वदी चतुर्दशी के दिन गुरु महाराज के साथ संघ ने वार्षिक प्रतिक्रमण किया और अमावस्या के दिन प्रात:काल अबाल-वृद्ध नर-नारी सभी-जन मन्दिर जी में एकत्रित हो गए और भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण महोत्सव मनाया। आचार्य गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में सर्वप्रथम भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा का अभिषेक हुआ, उसके बाद भगवान महावीर स्वामी की पूजा हुई। तत्पश्चात् निर्वाणकाण्ड पढ़ा और सभी ने अपने घर से बनाकर लाये लाडूओं को भक्तिभाव से चढ़ाया। फिर समाज के गणमान्य प्रतिष्ठित लोगों ने आचार्य श्री को श्रीफल समर्पित कर निवेदन किया कि अष्टाह्निका पर्व में सिद्धचक्र मण्डल विधान का सान्निध्य एवं आशीर्वाद प्रदान करें। सरल स्वभावी गुरुदेव ने श्रावकों के पुण्यार्जन हेतु आशीर्वाद प्रदान किया।
गुरु सान्निध्य में सिद्धचक्र महामण्डल विधान
१६ नवम्बर कार्तिक शुक्ल सप्तमी रविवार से २३ नवम्बर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा रविवार तक सिद्धचक्र महामण्डल पूजा-विधान सानन्द सम्पन्न हुआ और कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी २२ नवम्बर शनिवार के दिन संघ ने उपवास किया एवं चातुर्मास निष्ठापन की क्रियाएँ कीं और बंधन मुक्त हो गए। विधान में प्रात: आचार्य श्री का प्रवचन और दोपहर में मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का प्रवचन होता था। विधान पूर्ण होने पर धर्मप्रभावना शोभायात्रा निकली, जिसमें आचार्य श्री जी ससंघ सम्मिलित हुए।
पिच्छिका परिवर्तन समारोह
अष्टाह्निका विधान के सानन्द सम्पन्न होने पर जुलूस के बाद प्रवचन सभा में समाज के अध्यक्ष जी ने आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज को नवीन पिच्छिकाएँ भेंट कीं फिर आचार्य महाराज ने क्रमशः मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को, ऐलक सन्मतिसागर जी महाराज को, क्षुल्लक सुखसागर जी महाराज को एवं अन्य संघ के दो क्षुल्लक महाराज जिन्होंने साथ में चातुर्मास किया था उन्हें भी नवीन पिच्छिकाएँ दीं। आचार्य श्री जी ने अपनी पुरानी पिच्छिका केसरगंज के एक श्रावक को दी और मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज की पुरानी पिच्छिका मास्टर साहब निहालचंद जी बड़जात्या को दी। शेष पिच्छिकायें भी केसरगंज के श्रावकों को दीं।
गुरु-शिष्य मिलन
इस तरह १९६९ केसरगंज में चातुर्मास सानन्द सम्पन्न हुआ और मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज नसीराबाद में चातुर्मास करके लगभग २५ नवम्बर को केसरगंज पधारे। तब मुनि श्री विद्यासागर जी, ऐलक सन्मतिसागर जी, क्षुल्लक सुखसागर जी आदि और संघस्थ ब्रह्मचारीगण उनकी अगवानी करने हेतु थोड़े दूर तक गए। मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज ने मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज को पिच्छी उठाकर नमोऽस्तु किया। तब मुनि श्री विद्यासागर जी ने भी पिच्छी उठाकर प्रतिनमोऽस्तु किया। हम सभी ने भी मुनि श्री विवेकसागर जी को नमोऽस्तु किया एवं केसरगंज समाज ने बैण्ड-बाजों के साथ केसरगंज में प्रवेश कराया। मन्दिर पहुँचकर भगवान के दर्शन किए फिर गुरुदेव आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के कक्ष में जाकर मुनि श्री विवेकसागर जी महाराज ने नमोऽस्तु किया और गुरुभक्ति की तदुपरान्त उन्होंने गुरु के चरणस्पर्श किए। तब गुरुवर ने अपने दोनों हाथ विवेकसागर जी महाराज के सिर पर रखे। फिर कुशलक्षेम की वार्ता हुई। श्रद्धा-भक्ति और वात्सल्यपूर्ण वातावरण में दर्शकों के नयन गीले हो गए।''
केसरगंज से हुआ विहार : श्रद्धा के मोती चमक उठे
हे गुरुदेव! आपने जब २५ नवम्बर १९६९ को केसरगंज अजमेर से विहार किया तब के बारे में संघस्थ ब्रह्मचारी दीपचंद छाबड़ा जी (नांदसी) ने बताया“ जैसे ही गुरुदेव ने हम सब को बुलाया तो हम सभी ने मन्दिर जी में जाकर दर्शन किए और फिर गुरुदेव ने विहार कर दिया। समाचार फैलते ही समाज एकत्रित हो गई और सभी लोग गुरुदेव को निवेदन करने लगे-महाराज शीतकाल में यहीं पर विराजिये, किन्तु गुरुदेव मुस्कुराते रहे और आगे बढ़ते रहे। सभी की आँखों में श्रद्धा के मोती चमक रहे थे। केसरगंज से सोनी नसियाँ की ओर गुरुदेव बढ़ते चले गए।" इससे सम्बन्धित ‘जैन गजट' ११-१२-१९६९ की एक कटिंग दीपचंद जी छाबड़ा (नांदसी) ने मुझे दी। जिसमें कजौड़ीमल जी अजमेरा ने इस प्रकार समाचार प्रकाशित कराया-
धर्म प्रभावना
‘‘अजमेर-परमपूज्य आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ केसरगंज से विहार कर श्री सेठ साहब भागचंद जी सोनी जी की नसियाँ में पधार गए हैं। आचार्य श्री द्वारा दीक्षित शिष्य श्री १०८ विवेकसागर जी महाराज भी नसीराबाद में चातुर्मास पूर्णकर संघ में आ गए हैं। नसियाँ में प्रतिदिन प्रात:काल व मध्याह्न में पूज्य मुनिराज श्री विद्यासागर जी एवं श्री विवेकसागर जी का मार्मिक प्रवचन होता है। यहाँ महती धर्मप्रभावना हो रही है।'' इस तरह महत् प्रभावना के साथ एवं ज्ञान-ध्यान-तप साधना के साथ वर्षायोग सानंद सम्पन्न हुआ। यह जानकर अत्यन्त गौरव का अनुभव हुआ कि मेरे दादागुरु और मेरे गुरु ने आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी आचार्य समन्तभद्र स्वामी की मूल संघ परम्परा की साधना को जीवित रख श्रमण संस्कृति को विश्वस्त कर दिया कि पंचमकाल के अन्तिम समय तक इसी तरह जिन धर्म ध्वज फहराती रहेगी। ऐसे आगमानुसार चलने वाले गुरुजनों के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करता हुआ...
आपका
शिष्यानुशिष्य