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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पत्र क्रमांक - 117 - समाज की बिगड़ती हुई मानसिकता पर कटाक्ष

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    Vidyasagar.Guru

    पत्र क्रमांक - 117

    २७-०१-२०१८ ज्ञानोदय तीर्थ, नारेली, अजमेर

     

    आगम व्याख्याता गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज के पावन चरणों में त्रिकरण पूर्वक नमोऽस्तु..नमोऽस्तु...नमोऽस्तु... हे गुरुवर! आपके सान्निध्य में केसरगंज जैसवाल दिगम्बर जैन मन्दिर में १९६९ के पर्युषण पर्व में आपके व्याख्यान सुनने के लिए अजमेर की समाज केसरगंज में उमड़ पड़ती थी। इस सम्बन्ध में दीपचंद जी  छाबड़ा  (नांदसी) ने २०१५ भीलवाड़ा में बताया। वह मैं आपको बता रहा हूँ-

     

    समाज की बिगड़ती हुई मानसिकता पर कटाक्ष

    "भादवा माह के दसलक्षण पर्व में प्रातः ८ बजे से तत्त्वार्थ सूत्र के एक अध्याय पर गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज का व्याख्यान होता था और दोपहर में ३ बजे से मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज का एक एक धर्म पर मार्मिक प्रवचन होता था। पाँचवें दिन तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय के व्याख्यान के समय गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज ने 'द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः' सूत्र की व्याख्या करते हुए समाज पर कटाक्ष किया - "इस सूत्र को लौकिक अर्थ में भी इस तरह समझा जा सकता है। आज समाज में यह देखा जा रहा है कि "दृव्य जिसके आश्रयभूत है वह निर्गुण भी गुण के समान सम्मान पाते देखा जा रहा है अर्थात् पैसे वाला कम गुण होने पर भी दानादि के द्वारा सम्मान को पा रहा है।" यह सुनकर मुनि श्री विद्यासागर जी मुस्कुराने लगे समाज भी जोर-जोर से हँसने लगी।" गुरुवर! जिस प्रकार आप आगम सूत्रों के माध्यम से व्यावहारिक अर्थ भी निकाल दिया करते थे, उसी प्रकार आज आपके दार्शनिक सैद्धान्तिक शिष्य मेरे गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज भी सूत्रों के दार्शनिक सैद्धान्तिक व्यावहारिक विशेषार्थों को बताया करते हैं। केसरगंज में मनाये गए पर्युषण पर्व के बारे में कन्हैयालाल जी जैन केसरगंज, अजमेर ने भी १३-११-२०१५ भीलवाड़ा में बताया-

     

    क्षमावाणी एवं कलशाभिषेक उत्सव

     

    “दसलक्षण पर्व में सामूहिक अभिषेक-पूजन होता था। उसके बाद आचार्य महाराज का प्रवचन होता था। दोपहर में मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के एक-एक धर्म पर प्रवचन सुनते थे। पूनम के दिन केसरगंज में मुनि संघ के सान्निध्य में वार्षिक अभिषेक का कार्यक्रम मन्दिर के बाहर सड़क पर पाण्डाल लगाकर हुआ था। जिसमें पहले मुनि श्री विद्यासागर जी का प्रवचन हुआ फिर गुरुवर आचार्य श्री सागर जी महाराज का प्रवचन हुआ था। उसके बाद जिनाभिषेक हुआ और फिर क्षमावाणी पर्व मनाया गया| पूरा दिगम्बर जैन समाज अजमेर इस कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ था।" इस तरह मेरे गुरुदेव आपकी परम्परा आज तक निभा रहे हैं। पर्युषण पर्व में आज भी प्रातः सूत्र के एक अध्याय पर व्याख्यान देकर विशेष चिन्तनात्मक अर्थ बतलाते हैं और दोपहर में एक धर्म पर मार्मिक प्रवचन करते हैं। ऐसे ज्ञानी गुरु-शिष्य की सम्यग्ज्ञान दृष्टि को प्रणाम करता हूँ और आपके इस पोते शिष्य को भी हतात्त्विक दृष्टि प्राप्त हो इस भावना से...

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    आपका शिष्यानुशिष्य

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