बहोरीबंद, 5 अप्रैल 2001 गुरुवार की शाम को आचार्यश्री की वैय्यावृत्ति करके हम 2-3 महाराज लोग पास में ही खड़े थे,। आचार्यश्री भी उठे और तखत पर खड़े होकर चारों दिशाओं में आवर्त करके आसन लगाकर बैठ गए। फिर बोले- गर्मी बहुत हो रही है। इस तखत को थोड़े दरवाजे के पास कर दिय जाए तो हवा आएगी। ऐसा कहके उठने लगे।
हम लोगों ने कहा आप बैठे रहिए हम लोग उठाकर कर वहाँ रख देते हैं और आचार्यश्रीजी बैठे रहे। हम महाराज लोगों ने आचार्यश्री जी के तखत को दरवाजे के पास कर दिया। आचार्यश्रीजी से एक महाराज ने कहा। आपका वजन अधिक थोड़े ही है। हम 3-4 जन आराम से उठा सकते हैं। आचार्यश्रीजी ने सटीक उत्तर दिया- 'हाँ! हमारा वजन नहीं है, लेकिन हमारे ऊपर तो संघ का वजन है।' हम महाराज लोगों ने कहा- 'हम साधकगण इतने वजनदार थोड़े ही हैं, आप वजन समझते हैं।' आचार्यश्रीजी मौन रहते हुए कुछ सोचते रहे फिर जोर से हँस दिए और 'सामायिक करो, चलो ! हमें निर्देशित कर बाद में ओम्। शांति कहते हुए ध्यान में लीन हो गए।