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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • वाणी में आगम

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    मोक्षमार्ग पर चलने की निर्दोषता, गुरुजन अपनी चर्या के माध्य से लाते हैं, यदि गुरुजन, मुनिजन अपने लक्ष्य से हटकर संसार के राग की ओर आने लगें तो बुधजन चिंतित हो जाते हैं। अब क्या होगा मोक्षमार्ग का? ऐसी चिंता को लेकर निर्दोष चर्या के पालन करने वाले साधकों के चरणों में जाकर समाधान खोजते हैं। इसी प्रसंग को लेकर यह संस्मरण है :-

     

    15 जून 1998 सोमवार भाग्योदय तीर्थ-सागर में जैन गजट के संपादक पं. श्री नरेंद्र प्रकाशजी फिरोजाबाद, पं. श्री श्रेयांस कुमारजी बडौत, प्रतिष्ठाचार्य श्री गुलाबचंदजी पुष्प टीकमगढ़ एवं एक-दो विद्वान और साथ में थे। आचार्यश्री जी दोपहर की सामायिक के लिए खड़े हुए। तभी श्री नरेंद्रप्रकाशजी आचार्यश्री से बोले महाराजजी! हम लोगों को सामायिक के बाद आपसे विशेष चर्चा करनी है। यह बहुत ही आवश्यक कार्य है। आचार्यश्री ने तुरंत उत्तर दिया- पंडितजी! हमारे 6 आवश्यक हैं, सातवाँ कोई आवश्यक नहीं हैं। इसलिए मैं पहले से कैसे कह सकता हूँ? फिर धीरे से कह दिया देखो...।

     

    पंडित श्रेयांस कुमारजी बोले- महाराज जैसे आप अपने 6 आवश्यकों के बारे में सोचते हैं, वैसे सभी साधुगण सोचने लगें तो इस प्रकार की चर्चा करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। हम लोग आपसे मार्गदर्शन चाहते हैं, कि वर्तमान में साधुवर्ग में पनप रहा शिथिलाचार एवं परिग्रह का आकर्षण  इसको कैसे रोका जाए? इसके संदर्भ में एक समिति बनाई है, उसके लिए आपका संकेत एवं आशीर्वाद चाहते हैं, जो परम आवश्यक है। इसलिए दोपहर में चर्चा के लिए समय चाहते हैं।

     

    आचार्यश्री ने सहजता से पंडित श्री श्रेयांस कुमार जी को वैसा उत्तर दिया जैसा नरेंद्र प्रकाशजी को दिया था। बोले- पंडितजी! मेरी तो पाँचों समितियाँ हैं- छटवीं समिति मेरे पास नहीं है, और हँसने लगे। उनके लिए कहा देखो...। उपस्थित विद्वानों में से एक विद्वान बोले धन्य हैं आप। हर समय आगम युक्त विचारों को अपने पास रखते हैं। ऐसे सभी के विचार हो जाएँ तो जिनशासन की कितनी प्रभावना होगी। आचार्यश्री जी सामायिक में बैठ गए, विद्वान भी चले गए। बाद दोपहर में विद्वानों की वर्तमान में पनप रहे शिथलाचार के संदर्भ में चर्चा हुई। आचार्यश्री जी ने सभी को उचित मार्गदर्शन दिया।


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