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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • तप, श्रुत कार्य

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    ज्ञानी का जीवन हमेशा ज्ञान चेतनामय रहता है। वह सदा अपना उपयोग तत्व ज्ञान के चिन्तन में लगाए रखता है। यह पूरी क्रिया हमने परम पूज्य आचार्यश्री की दिनचर्या में देखी। वे चर्चा करते करते स्वाध्याय करा देते हैं : कैसे? प्रसंग है।

     

    24 मार्च 2001, शनिवार की प्रातःकाल विहार करके संघ बाकल जिला जबलपुर (म.प्र.) की ओर गमन कर रहा था। आचार्यश्री के साथ में हम 4-5 मुनिगण चल रहे थे। आचार्यश्री जी ने पूछा- बताओ गर्मी-सर्दी किस कर्म के उदय से लगती है? उत्तर दिया- हम लोगों के नामकर्म के उदय से। आचार्यश्री जी ने कहा- नामकर्म जो है वह पुद्गल है। पुद्गल रूप हमारा स्वभाव नहीं है। इसलिए हमें सर्दी-गर्मी की ओर दृष्टि नहीं देकर अपने आपकी ओर दृष्टि रखना चाहिए।

     

    हम लोगों ने कहा आप तो विहार करते हुए भी स्वाध्याय करते-कराते रहते हैं। आज किताब को रखकर, पढ़ने को स्वाध्याय मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं स्वाध्याय तो वह स्वभाव का अनुभव जिसको हो, आत्मा की बात है। वह स्वाध्याय हम विहार-आहार करते समय भी कर सकते हैं।


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