किसी को निर्णय देने से पहले अच्छे से पहले स्वयं निर्णय करो, उसके बाद किसी को अपना निर्णय सुनाओ और कोई आकर कुछ कहता-पूछता है तो तत्काल निर्णय मत दो। सुनो-सोचो और बाद में कुछ कहो। यही समझदार व्यक्ति का परिचय होता है। ये पूरे गुण आचार्यश्री के पास अवश्य मिलते हैं। इसी संदर्भ में यह प्रसग।
बात बीना बारहा अतिशय क्षेत्र की है। शाम का समय था, आचार्य भक्ति के बाद हम दो-तीन महाराज आचार्यश्री की वैय्यावृति कर रहे थे। प्रकरण निकला- लोग बिना देखे, बिना सोचे-समझे क्या से क्या अर्थ लगाने लगते हैं और भय के कारण तिल का ताड़ बना देते हैं। इसी संदर्भ में आचार्यश्री ने अपने ब्रह्मचारी अवस्था की घटना सुनाई।
बोले- 'हम ब्रह्मचारी अवस्था में आचार्यश्री ज्ञानसागरजी के पास मदनगंज किशनगढ़ में थे, मैं नया-नया था, हिन्दी आती नहीं थी, टूटी-फूटी हिन्दी आती थी। गुरु जी की वृद्धावस्था थी। रात्रि में उन्हें लघुशंका जाना होता, तो उन्हें पकड़कर हम ले जाते थे। एक बार गुरुजी को लघुशंका कराने ले जा रहे थे, उसी समय बिच्छु ने मुझे डंक मार दिया, उसका जहर चढ़ने लगा, मैं कमरे में आकर इधर-उधर पैर को झटकता हुआ चल रहा था। गुरुदेव ने कमरे में मेरी ये दशा देखी, मौन तो थे ही, इशारे में पूछा- 'क्या हो गया?' मैंने कहा- 'महाराज मुझे किसी ने काट लिया और दर्द बहुत बढ़ता जा रहा है, लगता जैसे साँप ने काटा हो।'
पू. श्री ज्ञानसागरजी महाराज भी हँसने लगे। उन्होंने उस समय हँसते हुए इशारे में कहा- 'नहीं! बिच्छू ने काटा होगा, क्योंकि इस प्रकार की दशा बिच्छू के काटने वाले व्यक्ति की होती है, साँप के काटने पर दो दाँत के निशान बनते हैं, थोड़ा खून भी आ जाता है और व्यक्ति को नींद आती है, और बिच्छू के काटने पर निशान भी मुश्किल से दिखता है, और दर्द से नींद भाग जाती है।" तभी कुछ श्रावकगण आए, उन्होंने संकेत दिए कि ब्रह्मचारीजी को बिच्छू ने काट दिया, उसका उपचार करो। उपचार से ठीक हो गया। जहर उतर गया। लेकिन पैर में थोड़ा-थोड़ा दर्द दो दिन तक बना रहा।
इस प्रकार हम लोग समझे जो घटना हुई है उसे किसी भी निर्णय के पूर्व अच्छे से देखो, जानो और समझो। बाद में निर्णय लेना चाहिए। भय का भूत कभी-कभी बड़ी-बड़ी समस्याएँ खड़ी कर देता है। अत: निर्णय में सावधानी रखना चाहिए।
देख समझ पहिचान कर, बोलत बोल प्रवीण |
बोले न देखे अजान के, नहिं होते वे कुलीन ||