आचार्यश्री ज्ञानसागरजी के संस्मरण आचार्यश्री के श्रीमुख से
पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज स्वाध्याय प्रिय थे और वे सदा "ज्ञान ध्यान तपोरत:" सूत्र को अपने उपयोग में रखते थे। अजमेर में कुछ गृहस्थ लोग जो अच्छे स्वाध्यायशील थे उनमें श्री छगनलालजी पाटनी, श्री मनोहरलालजी मास्टरजी, ब्र. प्यारेलालजी जो सातवीं प्रतिमा के धारी थे। आचार्यश्री ज्ञानसागरजी स्वयं स्वाध्याय करते व उन सभी को कराते। कभी-कभी आगम के मत-मतान्तर के बारे में चर्चा होती। छगनलाल, प्यारेलालजी उस मत विशेष को पकड़कर रह जाते, बार-बार उसी विषय पर चर्चा करते। चर्चा जब खिंच जाती तब आ. श्री ज्ञानसागरजी की विशेषता थी कि वे कभी पूर्व आचार्य के कथन को एकान्त से गलत है, यह नहीं कहते थे, वे उन लोगों को समझाते और कहते- 'भैया! आज ही सारी शंकाओं का समाधान कर लोगे क्या? वैसे भी हमारे सिर पर चार-छह बाल बचे हैं। इसको तो बचने दो।' और हँस देते थे।
फिर धीरे से कहते- "जब हमें केवलज्ञान होगा, जो सही होगा, उसको जान लेंगे, और जब आप लोगों को केवलज्ञान हो तो आप लोग जान लेना। दोनों को समाधान हो जाएगा। हठ मत करो। आचार्यों का क्या अभिमत रहा होगा, उन्होंने किस अपेक्षा से कहा होगा, हम अपनी अल्पबुद्धि से उसको नहीं जान सकते हैं। ऐसे विषयों का संकलन करते जाओ। समय आने पर उनका समाधान मिल जाएगा।"