बहोरीबंद, 30 अप्रैल 2001 सोमवार को आचार्यश्री जी के पास शाम के समय सामायिक के पूर्व बैठा था। आज गर्मी के कारण उमस बहुत थी। हमने कहा- आज गर्मी बहुत है, हवा भी नहीं चल रही है। आचार्यश्री जी- 'हाँ आज अधिक गर्मी तो है। तुम लोगों को तो ये पहली गर्मी मिली दीक्षा के बाद। इससे पूर्व अमरकंटक में तो गर्मी लगी ही नहीं थी।' हमने कहा- हाँ, मुनि दीक्षा के बाद तो ये पहली गर्मी है।
आचार्यश्री ने इसी दौरान बताया आचार्यश्री ज्ञानसागरजी की सल्लेखना के समय जब मैं साथ में राजस्थान में था। उस समय 7 बजे ऐसा लगने लगता था जैसे हीटर के सामने बैठे हैं। 1015 कदम पर ही आहार को जाता था, लेकिन जैसे ही आहार करके आता था तो थोड़ी ही देर में मुँह सूखने लगता था। ऐसी गर्मी में महाराज ने सल्लेखना ली थी। उस वर्ष अकाल का तीसरा वर्ष था। लगातार तीन वर्षों से अकाल पढ़ रहा था, वर्षा नहीं हुई थी। महाराज जी की सल्लेखना ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को हुई और दो दिन बाद लगातार दो दिन तक अच्छी वर्षा हुई। ऐसी गर्मी में महाराज ने अपने शरीर की वेदना को सहा और अपने समता परिणामों को स्थिर बनाए रखा था। धन्य है उनकी साधना, उनका तो मेरे ऊपर बड़ा उपकार है। ऐसा करते हुए आचार्यश्री जी सामायिक में बैठ गए।
गुरुनाम गुरु देव के, साधक सुधिपुमान |
तपन सहे सम भाव से, शीतल करे सुज्ञान ||