कोनीजी क्षेत्र में षट्खंडागम ग्रन्थराज स्वाध्याय के दौरान कुछ गणित संबंधी विषय आया। आचार्यश्रीजी ने उसे एक उदाहरण के माध्यम से बहुत जल्दी हल करके समझा दिया। सबकी समझ में आ गया। तभी एक महाराज ने कहा- 'लगता है आप जब स्कूल में पढ़ते होंगे तब गणित में अच्छे नंबर लाते होंगे? यह पूछने उन्होंने पर एक घटना सुनाई।
'मैं जब पढ़ता था, उस समय एक दृढ़भाजक गणित होता था। उत्तर भारत में क्या कहते हैं। ज्ञान नहीं। दक्षिण भारत में दृढ़भाजक कहते हैं। कक्षा में इसी का एक सवाल सभी के लिए हल करने को दिया। हमने (पीलू) शीघ्र ही हल करके दिखा दिया। लेकिन शिक्षक महोदयजी ने देखा और बोले 'गलत है, बैठ जाओ।” मैं सोचता रहा। बार-बार हल किया। उत्तर वही आता था, पूछ उतर आया कि नहीं। हमने कहा- 'उत्तर तो वही आ रहा है। मेरी दृष्टि में तो सवाल गलत नहीं, कहाँ पर गलती है आप बताइए।' शिक्षक ने कहा उत्तर तो सही है, मैं देखना चाहता था तुम अपने किये हल पर कितने स्थिर हो। मैं तुम्हारे साहस और दृढ़ता को देखना चाहता था, तुम्हारी मानसिकता को देखना चाहता था। जैसे ही शिक्षक ने ऐसा कहा मैं प्रसन्न हो गया।
आचार्यश्री आज भी उसी साहस और दृढ़ता से कठोरतम साधना भी सहज ही में कर लेते हैं, क्योंकि बचपन से ही जिसने साहस दृढ़ता का पाठ सीखा हो, वह समता को कैसे नहीं धारण कर सकता। 'साधना के पथ पर दृढ़ता के साथ चलते हुए सबको चला रहे हैं।'
आगे आगे बड चले, लक्ष्य को लिए विशाल |
द्रड साहेस एकाग्रता, हल कर देती सवाल ||