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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • बड़े बाबा की बड़ी रेंज

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    मार्ग की बाधाएँ भी साधन बन जाती है, यदि साधक का मन श्रद्धा-विश्वास और भक्ति से भरा है। मंजिल की ओर ठोस कदम, तन नहीं, मन की संकल्प शक्ति ही बढ़ाया करती है। संकल्प शक्ति जिसकी सुदृढ़ है तो समझो मार्ग की बाधाएँ उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। पहले आगे स्वयं कदम बढ़ाए जाते हैं। कल के बारे में सोचने वाला अपने हाथ से आज को भी खो देता है। पूज्य आचार्यश्री को देखते हैं तो वे कल के बारे में सोचने के लिए समय नहीं गवाते हैं। आज के बारे में सोचकर सारा कार्य करते हैं। उनकी दृष्टि में आज अच्छा है, कल तो एक कल्पना का विस्तार है। प्रतिकूलता को अनुकूलता में परिवर्तित कर अपने कदमों को गतिमान करने वाले महान साधक योगी, संतों में महासंत, पूज्य गुरुवर का प्रसंग याद आता है।

     

    प्रसंग : बात कुंडलपुर 22 मार्च 2001 गुरुवार के दिन की है। प्रात:काल आहार चर्या को निकले, आहार थोड़े ही हुए थे और अंतराय आ गया। दोपहर में हम सब निश्चिंत बैठे थे, विहार की कोई संभावना जो नहीं थी। दोपहर के 2.30 बजने को थे, हमने देखा कि आचार्यश्री ने अपना कमण्डल उठाया और चल दिए बड़े बाबा के मंदिर की ओर। एक महाराज ने पूछा- दर्शन करने चलना है? आचार्यश्री- 'हाँ दर्शन करके विहार भी करना है।' तब हम सभी साधुओं ने बैग में पुस्तकें, ग्रंथ आदि रखें और आचार्यश्री के पीछे-पीछे चल दिए। चर्चा करते चल रहे थे अंतराय में कैसे विहार कर दिया? कुछ आहार में लेते नहीं, और अंतराय में विहार कर दिया थोड़ी देर में आचार्यश्री के पास पहुँच गए। तभी कुंडलपुर से 6-7 कि.मी. दूर कटनी रोड पर बर्रठ ग्राम पहुँचे।

     

    तेज धूप तो थी ही, अचानक एक छोटी सी बादल की टुकड़ी आई और बड़ी-बड़ी बूंदों के साथ पानी गिरने लगा, सभी महाराज भीग गए। हम आचार्यश्री के बाजू में चल रहे थे, तभी अचानक मुँह से निकल गया। 'बड़े बाबा अपने छोटे बाबा का बड़ा ध्यान रखते हैं। आज अंतराय है, गर्मी न बढ़ जाए इसलिए ठंडक की व्यवस्था कर दी। देखो यहाँ के अलावा आगे पीछे और कहीं बादल-पानी नहीं दिख रहा है।' आचार्यश्री थोड़ी देर बाद बोले- 'अरे भैया! बड़े बाबा का जो ध्यान करता है, उसकी व्यवस्था अपने आप हो जाती है।' हमने तभी कहा- 'आचार्यश्री आप ही तो कहते हैं कि बड़े बाबा की रेंज बहुत बड़ी है। वे वहाँ पर बैठे-बैठे सब काम कर देते हैं। फिर छोटे बाबा के लिए भी तो बड़े बाबा बहुत अच्छे लगते हैं तो बड़े बाबा भी छोटे बाबा का पूरा ध्यान रखते हैं।' पानी बंद हो चुका था तभी एक श्रावक कुंडलपुर से आए वाहन से उतरे तो उनसे पूछा 'क्यों? कुंडलपुर में पानी गिरा है?" वे सजन बोले- 'दो किमी. दूर भी पानी नहीं है.कुंडलपुर में तो एक बूंद पानी नहीं गिरा।'

     

    आचार्यश्री ने तभी कहा- 'जो मोक्षमार्ग में आगम के अनुसार चलता है उसकी व्यवस्था सहज में हो जाती है। इसलिए हमें मार्ग से विपरीत नहीं चलना चाहिए, उसके अनुकूल ही चलना चाहिए।' यह प्रसंग सुदृढ़ संकल्प शक्ति का परिणाम है, जिससे बाधाएँ भी साधक-कारण बन कर साधना करने वाले की सहायता करती है |


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