Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • स्वाध्याय 4 - जिनवाणी/आगम

       (1 review)

    स्वाध्याय 4 - जिनवाणी/आगम विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. बहुत नहीं बहुत बार पढ़ने से ज्ञान का विकास होता है।
    2. विनय से पढ़ा गया शास्त्र विस्मृत हो जाने पर भी परभव में केवलज्ञान का कारण बनता है।
    3. तत्व चिंतन एक ऐसा माध्यम है जो सभी चिन्ताओं को मिटाकर जीवन में निखार लाता है।
    4. समयसार को कंटस्थ करने की जरूरत नहीं बल्कि हृदयस्थ करने की जरूरत है।
    5. इस प्रचार-प्रसार के युग में कागजी फूलों से ही खुशबू नहीं आने वाली, न ही कागजी दौड़ से हम मंजिल को पा सकते हैं।
    6. खदान खोदने से सारे के सारे हीरे ही निकलते हैं ऐसा नहीं, बहुत सारा खोदने पर जब कभी एकाध हीरा मिल जाता है इसी प्रकार बार-बार ग्रन्थों का स्वाध्याय करने पर एक अलग ढंग से सोचने का रास्ता बनता है, कुछ न कुछ नया प्राप्त होता है।
    7. ग्रन्थों का पठन-पाठन मात्र ही कल्याणकारी नहीं है, क्योंकि वह तो शब्द ज्ञान ही है जिसे मूढ़ अज्ञ जन भी कर सकते हैं। किन्तु शब्दों से अर्थ तथा अर्थ से परमार्थ की ओर हमारे ज्ञान की यात्रा होनी चाहिए।
    8. आप पुराणों को पढ़ना प्रारंभ कर दीजिये और उपन्यासों को लपेटकर रख दीजिये, नहीं तो उपन्यासों के साथ-साथ आपका भी न्यास हो जायेगा।
    9. उपन्यासों को पढ़कर न आज तक कोई संन्यासी बना है और न ही आगे बनेगा। हाँ.....उपन्यास की शैली में यदि हम पुराणों को देखना चाहें पढ़ना चाहें तो यह बात अलग है।
    10. उपन्यास की शैली से मेरा कोई विरोध नहीं लेकिन भावना, दृष्टि और हमारा उद्देश्य साफ सुथरा होना चाहिए।
    11. जिनवाणी का कोई निर्धारित मूल्य नहीं होता, वह तो अनमोल वस्तु है उसके लिये जितना भी देना पड़े कम है।
    12. कभी भी जिनवाणी के माध्यम से अपनी आजीविका नहीं चलाना। जिससे रत्नत्रय का लाभ होता है उसको क्षणिक व्यवसाय का हेतु बनाना उचित नहीं।
    13. उस माँ के संस्कार सही संस्कार नहीं हैं जो अपने बेटे को मोह की निद्रा में सुलाती है किन्तु उस जिनवाणी माँ के संस्कार सही संस्कार माने जायेंगे जो हमेशा इस जीव को मोहनिद्रा से जगाती है।
    14. जिनवाणी की सही सेवा यही है कि जो सुपात्र है उसे खोजकर आप स्वाध्याय हेतु दीजिये।
    15. अगर सम्यकज्ञान की रक्षा चाहते हो तो जिनवाणी माँ की भी रक्षा करो।
    16. वास्तविक विद्वान वही है जो अनादिकालीन दुखों के विमोचन के लिए जिनवाणी की आराधना करते हैं।
    17. श्रुताराधना रूपी फूल ही समाधि रूपी फल में ढलता है।
    18. जिनवाणी की सही सेवा तो जिनलिंग धारण करने पर ही संभव है।
    19. हमें पवित्र जिनवाणी में जनवाणी नहीं मिलाना चाहिए।
    20. मन मारना यह जिनवाणी को मानना है पर मन के वश होना जिनवाणी की अवमानना है।
    21. जिनवाणी को उसी स्थान पर सुनाना जहाँ उसका स्वागत हो सके।
    22. निर्वाण रूप लक्ष्य को बनाकर जिनवाणी की आज्ञा पालने वाला भव्य होता है क्योंकि कहा गया है कि "निर्वाण पुरुस्कृत:भव्य:” और निर्वाण रूप पुरस्कार भी वही पाता है जो जिनवाणी की आज्ञा पालता है।
    23. आप जितने बहुमान आदर और श्रद्धा के साथ जिनवाणी को पढ़ेंगे, आपके परिणाम उतने ही विशुद्ध होंगे, उतना ही आपका क्षयोपशम बढ़ेगा।
    24. जिनवाणी के विशाल सागर में से यदि एक बूंद का भी पान कर लिया जाये तो यह आत्मा जन्म जन्मान्तरों के आताप को हर सकती है।
    25. जिनवाणी की गंगा तो बहुत विशाल बह रही है लेकिन उससे क्या? कल्याण तो हमारा उसके घाट पर जाने में है, झुककर पानी पीने में है। एक बार प्यास बुझाकर देखो सारा जीवन तृप्त हो जायेगा।
    26. यह मनरूपी मर्कट यदि उन्मुक्त विचरण करना ही चाहता है तो आत्मार्थी इसे शास्त्रों के बगीचे में विचरण कराये।
    27. "आगम चक्खू साहू" आगम ही साधु के दिव्य नेत्र हैं जिसके माध्यम से ही वह कोई चर्चा या चर्या करता है और उस आगम में प्रामाणिकता वीतरागता से आती है।
    28. आगम एक माप है तुला है उसे समतुला होना चाहिए। कभी भी उसमें अपनी तरफ से कमी वेशी नहीं करना चाहिए।
    29. आगम और इतिहास का अवलोकन सूक्ष्म ढंग से कर लेना चाहिए। आगम का आधार भी जवाब रूप में जब कभी नहीं देना किन्तु जो गंभीर और अच्छे ढंग से आगम का पक्ष लेकर समझने वाले हैं उन्हें ही बतलाना चाहिए।
    30. जब तक इस धरती पर सच्चे शास्त्र हैं तब तक ही हमारी आँखें खुल सकेंगी। बंधुओं! जिनवाणी के अलावा जानकारी के लिये हमारे पास दूसरा साधन है ही क्या?
    31. आचार्य प्रणीत आगम ग्रन्थों को पढ़कर अपने जीवन को उन्हीं के अनुरूप ढालने का प्रयास करना चाहिए। यही स्वाध्याय का, देव-शास्त्र-गुरु की उपासना का फल है। यदि यह नहीं है तो समझ लो वह सांसारिक उपलब्धि के लिये ही कारण बनेगा।

    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    रतन लाल

       2 of 2 members found this review helpful 2 / 2 members

    देव शास्त्र गुरु को नमन

    Link to review
    Share on other sites


×
×
  • Create New...