संस्तुति 5 - श्वांस-श्वांस विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- श्वांस-श्वांस में यदि भक्ति और विश्वास जम जाये तो भवसागर से पार होने में देर नहीं।
- स्वार्थ की बुँ आते ही वर्षों का जमा हुआ विश्वास भी खिसकने लगता है।
- प्राचीन मंदिरों में दरवाजे बहुत छोटे बनाये जाते थे, उसका कारण है कि त्रिलोकीनाथ के दरबार में झुककर जाना जरूरी है क्योंकि अहंकार को गलाये बिना भगवद्भक्ति का आनंद आ ही नहीं सकता |
- बुद्धि नहीं, हृदय ही वास्तव में भक्ति भावना तथा समर्पण का केन्द्र है। श्रद्धा की अभिव्यक्ति आचरण के माध्यम से ही होती है।
- श्रद्धा जब गहराती है तब वही समर्पण बन जाती है।
- किसी पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपने आपको श्रद्धेय के प्रति सौंप देना ही समर्पण है।
- सीता, अंजना और मैना-सुन्दरी जैसी महान सतियों का जीवन नारी जगत् के लिये आदर्श है। उनके जीवन में कितनी ही विषम परिस्थितियाँ आई किन्तु उन्होंने धीरज और साहस को नहीं छोड़ा। जंगलों में भटकते हुए भी धर्म तथा कर्मफल पर अटूट आस्था रखी।
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