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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सत् शिव सुन्दर 6 - राष्ट्र-भावना

       (2 reviews)

    सत् शिव सुन्दर 6 - राष्ट्र-भावना विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. देश पर आपत्ति के क्षणों में अपने संग्रहीत धन का सदुपयोग नहीं करना, राष्ट्र के प्रति बहुत बड़ी कृतघ्नता है।
    2. कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति ही देश और धर्म की सुरक्षा कर सकता है।
    3. देश के प्रति गौरव, बहुमान एवं अपनत्व के द्वारा ही लोकतंत्र की नींव सुरक्षित रहेगी।
    4. त्याग, तपस्या तथा नि:स्वार्थ सेवा के बिना आत्मोद्धार और देश का उद्धार संभव नहीं।
    5. सभी जीव सुखी हों, सभी का कल्याण हो, सभी प्रसन्न रहें, राजा धार्मिक बना रहे। इस तरह की भावना सभी को भानी चाहिए।
    6. देश में एकता, शांति और संस्कृति के संरक्षणार्थ जो भी कदम उठाए जायें वह सब स्वागत के योग्य हैं।
    7. हमें अपने राष्ट्र के प्रति गौरव, भक्ति और समर्पण होना चाहिए। हमारा देश हर तरह से समृद्धशाली बने तथा शांति अहिंसा का विस्तार हो ऐसी लोक हितकारी भावना भी रखनी चाहिए।
    8. यदि हमारे अन्दर राष्ट्रीयता नहीं है, देश के प्रति निष्ठा नहीं है हम स्वयं ही उसकी जड़े कमजोर करने में लगे हैं तब फिर हमसे बड़ा कृतघ्नी और कौन होगा? हम जिस डाल पर बैठे हैं, यदि उसे ही काटने लगे तो सोचो भला फिर हमारा क्या होगा? पता नहीं हमारी ये अज्ञानता हमें कहाँ ले जायेगी।
    9. जो व्यक्ति राजकीय नियमों का उल्लंघन करके कोई कार्य करता है, तो समझिये कि वह अपनी तरफ से ही धार्मिक कार्यों में बाधा उपस्थित करता है।
    10. समाजवाद का वास्तविक अर्थ है सबके साथ वात्सल्य, प्रेममय व्यवहार, सबका हित देखना हिल मिलकर रहना।
    11. हम समाजवाद-समाजवाद की बात तो बहुत करते हैं, पर होता यह है कि पहले हम... समाज बाद में ! समाजवाद का यह रूप तो ठीक नहीं।
    12. जिस प्रकार दानवीर भामाशाह ने अपनी न्यायोपार्जित संपत्ति को न्योछावर कर राष्ट्र सुरक्षा संवृद्धि के लिये योगदान दिया उसी प्रकार आज भी प्रत्येक राष्ट्रभक्त श्रावक के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर देश की रक्षा करना चाहिए।
    13. देश के धन को विदेशी बैंकों में जमा करना और व्यक्तिगत पूँजी बना लेना राष्ट्र की नींव को कमजोर करना है।
    14. पारस्परिक सौहाद्र और समन्वय से ही देश की एकता और अखंडता कायम रह सकती है।
    15. प्रेम, मैत्री, करुणा और आस्था समाज संगठन की आधारभूत भावनायें हैं।
    16. विनय, वात्सल्य, एकता तीनों रत्नत्रय के समान हैं। समाज की संरचना में इनका बहुमूल्य योगदान है।
    17. अपरिग्रह का सिद्धान्त समाजवाद का व्यवहारिक रूप है यह सिद्धान्त समाजवाद को जीवित रखने के लिये संजीवनी का काम करता है।
    18. जिस व्यक्ति के अन्दर अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम नहीं है वह व्यक्ति राष्ट्र भक्त कैसे कहा जा सकता है?  
    19. देशद्रोह, अपराधों में एक बहुत बड़ा अपराध है।
    20. देश के प्रति वफादार होना ही राष्ट्र के प्रति सच्ची कृतज्ञता है।
    21. धर्माराधन के लिये शासकीय अनुकूलतायें होना भी जरूरी है। प्रशासक (राजा) यदि धर्म का पक्षधर हो तो उसे राज्य में रहने वाले तपस्वियों के तप का छठवाँ भाग सहज ही मिल जाता है।

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