साधना 1- रत्नत्रय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- रत्नत्रय वह अमूल्य निधि है जिसकी तुलना संसार की समस्त सम्पदा से भी नहीं की जा सकती।
- रत्नत्रय की कीमत, उसकी क्षमता अदभुद है बंधुओ! अन्तर्मुहूर्त हुआ नहीं कि यह जीव केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण भी पा सकता है।
- भव्यत्व की पहचान भले ही सम्यकदर्शन के साथ हो सकती है किन्तु उसकी अभिव्यक्ति रत्नत्रय के साथ ही होगी।
- रत्नत्रय ही हमारी अमूल्य निधि है, इसे बचाना है। इसको लूटने के लिये कर्म चोर सर्वत्र घूम रहे हैं। जागते रहो, सो जाओगे तो तुम्हारी निधि लूट जायेगी।
- रत्नत्रय में तपन के बिना चमक नहीं आती अत: उसे भी बारह तपों से तपाना आवश्यक है।