धर्म संस्कृति 6 - इतिहास विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जैन धर्मानुयायियों का देश के प्रति बहुत बड़ा योगदान है। समय-समय पर आचार्यों ने धीमानों तथा श्रीमानों ने अपनी सूझबूझ कुशलता से राजाओं तक को निर्देश देकर देश की समृद्धि में सहयोग दिया है।
- दानवीर भामाशाह जैसे उदार हृदय जैनी श्रेष्ठी श्रावकों ने राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर देश की रक्षा के लिये महाराणा प्रताप के सामने अपना सारा खजाना खोलकर रख दिया था और कृतज्ञता भरे शब्दों में कहा था कि यह सम्पति हमारी नहीं राष्ट्र की ही है आप इसे स्वीकार करें और देश की रक्षा करें।
- जैन इतिहास में दीवान अमरचंदजी एक ऐसे व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने अहिंसा और सद्भावना के बल पर राजा को तो परिवर्तित किया ही किन्तु मांसाहारी सिंह के पिंजड़े में भी जाकर उसे भी जलेबियाँ खिलाई। यह सब अहिंसक भावना का प्रभाव है।
- इतिहास में सम्राट् अशोक एक ऐसा शासक हुआ है जिसने कलिंग युद्ध का नरसंहार देखकर अपना हृदय, अपना जीवन ही बदल लिया और फिर सिंहासन पर बैठते हुए भी बिना तलवार के शासन किया।
- सम्राट् अशोक के शिलालेखों से भी विदित है कि उसका जीवन दयावान, न्यायप्रिय और काफी धार्मिक रहा है। उसने अहिंसा, प्रेम, आत्मीयता, परोपकार और भाईचारे पर काफी जोर दिया है।
- इतिहास इस बात का साक्षी है कि युगों युगों से धर्म को राजाश्रय एवं राजसंरक्षण प्राप्त रहा है। राजाओं की सहयोगी छाया में सत्य और अहिंसा धर्म ने अपना विस्तार सारी धरती पर किया है।
- अन्तिम सम्राट् चन्द्रगुप्त ने जीवन के उपान्त समय में जैनेश्वरी दीक्षा लेकर श्रमण संस्कृति में एक ऐसी कड़ी जोड़ी है जो आज भी हमें गौरवान्वित कर रही है।
- भगवान महावीर स्वामी को जैनधर्म का संस्थापक मानना इतिहासकारों का भ्रम है। यथार्थ में इस धर्म का प्रवाह तो अनादि अनिधन है किन्तु इस युग में धर्म के संस्थापक/प्रवर्तक भगवान ऋषभदेव हुए और इसी क्रम में कालान्तर से शेष तेईस तीर्थंकर और हुए जिनमें अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी थे।
- तीर्थंकर वर्धमान की शादी नहीं हुई वह तो बालब्रह्मचारी थे, उनके गर्भहरण का कथन भी दिगम्बर आम्नाय सम्मत नहीं है। इस चौबीसी में तीर्थंकर वर्धमान के समान और भी चार बालयति हुए हैं।
- ऋषभदेव के पुत्र प्रथम चक्रवर्ती भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है, यह बात स्वयं इतिहास से सिद्ध है।