Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • संस्तुति 2 - भक्ति/स्तुति

       (0 reviews)

    संस्तुति 2 - भक्ति/स्तुति  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. इधर-उधर की पंचायत में मत रमो किन्तु पंच परमेष्ठी की भक्ति में लीन हो जाओ, वह भक्ति तुम्हारी मुक्ति का कारण बनेगी।
    2. स्तुति करने का प्रयोजन मात्र रागात्मक क्षणों की प्राप्ति नहीं है बल्कि चित्त में शांति-वैराग्य और संयम में वृद्धि भी होनी चाहिए।
    3. भक्ति या गुणानुवाद आन्तरिक भावों के साथ होना चाहिए-वह मात्र दिखावा या प्रदर्शन नहीं हो ।
    4. हे रसना! तूने आज तक राग भरे गीत-संगीत में ही रस लिया है अब उसमें रस ना ले। अध्यात्म भरी भक्ति वीतराग विज्ञान में रस ले।
    5. भक्ति, मुक्ति के लिये कारण है और भुक्ति संसार के लिये।
    6. पहले दासोऽहं फिर उदासोऽहं बाद में सोऽहं और अन्त में अहं, भक्त से भगवान् बनने का क्रम यही है।
    7. भक्ति कभी भी हेय बुद्धि से नहीं होती बल्कि उसे तो उपादेय बुद्धि से गद्गद् होकर करनी चाहिए।
    8. भक्ति तो ठीक है किन्तु अन्धभक्ति ठीक नहीं। बंधुओ! भक्ति को विवेक की डोर से बाँधे रखना।
    9. सच्चे दिगम्बर गुरुओं की हमें मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करनी चाहिए, साथ ही इस जिह्वा को यह शिक्षा देनी चाहिए कि हे! रसना जब तक तुझमें शक्ति है तब तक गुरु की महिमा गाती रह, तेरे लिये ये सौभाग्य के क्षण हैं।
    10. हम सभी महान् सौभाग्यशाली हैं जो दिगम्बर गुरुओं के दर्शन मिल रहे हैं, तरस गये वह बनारसीदास, भूधरदास, द्यानतराय जैसे विद्वान जिन्हें अपने जीवन काल में दर्शन नहीं मिल पाये। उनके हृदय की पीड़ा भजनों की पंक्तियों में झलकती है, कई जगह लिखा मिलता है - "कब मिल हैं वे गुरुवर उपकारी." कितनी आस्था-भक्ति थी गुरुओं के प्रति।
    11. पंच परमेष्ठी की भक्ति एवं ध्यान से विशुद्धि बढ़ेगी, संक्लेश घटेगा, वात्सल्य बढ़ेगा।
    12. हम भाग्यवान् हैं कि जिनवाणी आज उपलब्ध है, उस मातेश्वरी के माध्यम से हम कम से कम स्व-पर को समझकर पंच परमेष्ठी की स्तुति भक्ति तो कर सकते हैं।
    13. जिनवाणी की स्तुति करने से जिनदेव की भी स्तुति हो जाती है क्योंकि भगवान् तीर्थकर द्वारा ही प्रतिपादित सारा तत्व जिनवाणी में है।
    14. भक्ति जब पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है तब वाणी मूक हो जाती है कण्ठ अवरुद्ध हो जाता है आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है, ऐसी स्थिति भक्ति भावना के प्रवाह में ही होती है।
    15. इतिहास के प्रसंग और प्रथमानुयोग में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे स्पष्ट है कि अंतत: धर्मात्मा की ही विजय होती है। जिसने भी पवित्र मन से भगवान् की पूजा भक्ति की है उसकी रक्षा देवताओं ने भी की है।
    16. महान् दार्शनिक होते हुए भी आचार्य समन्तभद्र महाराज स्तुति के क्षेत्र में पीछे नहीं रहे। चौबीस तीर्थकरों की स्तुतिस्वयंभूस्तोत्र' लिखने के बाद भी उन्होंने स्तुति के रूप मेंस्तुति विद्या' लिखी। धन्य था उनका जीवन और अद्भुत थी उनकी भगवद्भक्ति।
    17. जैसे हो पृष्ठों के बीच गोंद लगाने पर दोनों पृष्ठ एक हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार भक्त और भगवान् के बीच भक्तिरूपी गोंद लगाने से दोनों एकमेक हो जाते हैं।
    18. आचार्यों ने उपदेश दिया है कि हे! संसारी प्राणी तू क्यों यहाँ वहाँ की बातों में उलझ रहा है। पंच परमेष्ठी की भक्ति कर, भगवान् का गुणगान कर। भक्ति करने से चित्त को शान्ति मिलेगी, अहंकार घटेगा, नर पर्याय सार्थक होगी।
    19. भगवद्भक्त बीहड़ घनघोर जंगल में भी रास्ता पा लेता है और भगवान् को भूल जाने वाला साफ सुथरे रास्ते पर भी भटक जाता है।
    20. स्तुत्य प्रत्यक्ष हो या न हो स्तुति करने वाला तो गुणों का स्मरण कर पवित्र हो जाता है।
    21. प्रभु बनकर नहीं किन्तु लघु बनकर ही प्रभु की भक्ति की जा सकती है।
    22. जिस प्रकार सीपी के योग से तुच्छ जल कण भी महान् मुताफल बन जाते हैं ठीक उसी प्रकार भगवान् के प्रति किया गया अल्प स्तवन भी महत् फल प्रदान करता है।
    23. नाल से जुड़े कमल का जिस प्रकार सूर्य की तेज किरणें भी कुछ बिगाड़ नहीं कर पाती ठीक उसी प्रकार भगवद्भक्ति से जुड़े रहने पर भक्त का संसार में कुछ भी बिगाड़ नहीं होता।

    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...