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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • याचना

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    याचना विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. गुफायें ही साधु के घर हैं, फिर घर आदि की याचना क्या करना ?
    2. प्रभु से प्रार्थना, याचना करो बोधि, समाधि की किसी और से नहीं।
    3. जो व्यक्ति माँगता है, याचना करता है, वह परमाणु से भी छोटा होता है और जो नहीं माँगता है, वह आकाश से भी बड़ा हो जाता है, इसलिए स्वाभिमानी ही बड़ा माना जाता है।
    4. महास्कंध तीन लोक माना जाता है, लेकिन उससे बड़ा महास्कंध वह है जो कभी याचना नहीं करता।
    5. याचना करने वाले का गौरव दाता के पास चला जाता है। आहारचर्या में मान की परीक्षा अच्छी तरह से हो जाती है, आहार लेने वाले को संकोच अपने आप आ ही जाता है।
    6. तराजू के पलड़े यह संदेश देते हैं कि जो कोई लेता है वह नीचे की ओर जाता है और जो कुछ नहीं लेता वह अपने आप ऊपर की ओर जाता है।
    7. धन थोड़ा है, उससे सभी की इच्छा पूर्ति नहीं हो सकती, इसलिए उसकी आशा रखने की अपेक्षा दरिद्र रहना ही ठीक है। संतोष धारण करना ही एक मात्र उपाय है, इसी से तृप्ति मिलेगी।
    8. स्वाभिमान एक ऐसा धन है जो कभी लुट नहीं सकता, लेकिन याचना करने से स्वाभिमान भी नहीं रहता।
    9. जिस वस्तु की आशा है उस वस्तु को पहले छोड़ दो, तभी आपके पास अयाचकपना बना रह सकता है।
    10. आत्म वैभव को छोड़कर जड़ वैभव की याचना करना अज्ञान का प्रतीक है।
    11. दान देकर बदले में कोई भी कामना नहीं रखनी चाहिए।
    12. अनशन का अर्थ है इच्छा के बिना ही आहार ग्रहण करना, यह अध्यात्म की अनोखी कला है।
    13. इस जीव को अपनी आत्मशक्ति और वैभव का गौरव नहीं है, इसलिए यह याचक वृत्ति नहीं छूटती।
    14. व्रत पालन करने वालों को कुछ याचना करने की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें सब कुछ अपने आप उपलब्ध हो जाता है।
    15. निर्धनता ही जिनका धन है, वे साधु परमेष्ठीधन्य हैं, ऐसे धनी के चरणों में तीन लोक का वैभव आने को मचलता है।
    16. हे आत्मन्! थोड़ी प्रतीक्षा कर लो, इस भव में तप कर लो, फिर स्वर्ग में तो भोग मिलना ही हैं।संसार में सुख तो पानी की भाँति हैं और मोक्ष सुख भोजन है, भोजन की प्रतीक्षा करो, पानी मत पीओ वरन् भोजन नहीं मिलेगा।
    17. दीनता और अभिमान से ऊपर उठने वाली लहर का आनंद अलग ही हुआ करता है।
    18. भारत देश से संस्कारों का निर्यात तो करो लेकिन विदेशी संस्कारों का आयात मत करो, इसी से देश में संतोष और शांति आयेगी।
    19. काली मिट्टी से तो हाथ धो सकते हैं लेकिन पीली मिट्टी से (सोना) तो मन तक मैला हो जाता है।
    20. चाहने वालों को ही धन का महत्व है, न चाहने वालों को तो वह मिट्टी है।
    21. तृष्णा की खाई आज तक नहीं भर सकी और न कभी भर सकती है, वह तो मात्र स्वाभिमान के द्वारा ही भरी जा सकती है क्योंकि स्वाभिमानी कभी आशा नहीं रखता है, वह तो स्वाभिमान को ही अपना धन मानता है।
    22. यहाँ आशीर्वाद से ही लोग संतुष्ट हो जाते हैं और घर में कभी भी आप लोग धन से संतुष्टि का अनुभव नहीं करते। इससे सिद्ध होता है कि संतुष्टि धन से नहीं धर्म से ही प्राप्त हो सकती है।

    Edited by admin


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