व्यसन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अपना हित किसमें निहित है यह ज्ञान व्यसनी को नहीं होता।
- किसी पदार्थ का अतिरेक से सेवन करना व्यसन में आता है।
- जिसके बिना रहा न जावे, उसे व्यसन कहते हैं।
- किसी-किसी को सदव्यसन भी होते हैं। जैसे-विद्या का, कविता पाठ करने का आदि।
- बुरी आदतें ही व्यसन का रूप ले लेती हैं।
- बुरी लत व्यसनी को लात मारकर नरक (पतन) के गड्डे में गिरा देती है।
- धन कमाने का व्यसन हमें धर्म से दूर कर देता है।
- कोई भी दुर्व्यसन हो वह दु:खदायी ही सिद्ध होता है।
- व्यसनी के पास कभी विद्या टिक नहीं सकती, व्यसनी पर कोई विश्वास नहीं करता।