विषय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- यह संसारी प्राणी जितने अच्छे भाव से, प्रमुदित भाव से, विषयों को देखता है, वैसे ही प्रभु को क्यों नहीं देखता? इसका कारण अनन्तकाल का आकर्षण है। स्वप्न में विषयों को तो देखता है लेकिन प्रभु को नहीं देखता, यह सब रुचि पर आधारित है।
- विषयों के विष से घुला हुआ भोजन क्यों कर रहे हो ? यह प्राणलेवा कलेवा (नास्ता) है।
- जीना चाहते हो लेकिन विषय रूपी विष पीकर, यह तो पागलपन है, ऐसा तो पागल भी नहीं करता। लेकिन सभी यह कर रहे हैं, इसलिए भव-भव में मृत्यु हो रही है।
- मनुष्य जीवन के गौरव को, स्वाभिमान को इस प्राणी ने विषयों के कारण मिट्टी में मिला दिया।
- इस संसार में जो राग का विषय है, वही कुछ समय बाद द्वेष का विषय बन जाता है। जैसे शाम को हवा अच्छी लगती है लेकिन अर्धरात्रि में वही कंपकंपी पैदा कर देती है।
- एक बात ध्यान रखो विषयों की पूर्ति से कभी भी शांति नहीं मिल सकती।
- विषयों की ओर जाने वाले व्यक्ति का भविष्य अंधकारमय ही होता है।
- विषय कषाय में आपादकण्ठ डूबे गृहस्थ को निश्चय धर्म हो ही नहीं सकता।
- यह संसार पंचेन्द्रिय विषयों से भरा-पूरा जंगल है, इसमें चार हाथ देखकर चलो, इधर-उधर प्रलोभनों की ओर देखा तो भटक जाओगे।
- यह संसारी प्राणी विष से तो डरता है, लेकिन विष से भी विषैले विषयों से नहीं डरता। वह बाह्य रूप पर मुग्ध हो जाता है, उसे नरक का कूप नहीं दिखता।
- बिल्ली की भाँति विषय भोग रूपी नवनीत की आस में यह दुनिया अटकी रहती है।
- दूसरों को देखकर तुम विषयों की ओर क्यों जाते हो ? जरा सोचो थोड़े से समय व सुख के लिए विषयों की इच्छा करना बड़ा अनर्थकारी है।
- बुखार से पीड़ित व्यक्ति को जैसे घी, तेल, मिर्च, खटाई आदि निषेध है, नुकसानदायक है, वैसे ही व्रती के लिए विषयाभिलाषा अनर्थकारी है। विषय-कषाय मोक्षमार्ग में कुपथ्य है।
- मोक्षमार्ग में दूसरे के लिए कुछ किया जा सकता, यह एक महान् भूल है। हाँ! भाव अच्छे रख सकते हो दूसरे के प्रति भी ताकि हमारा मन विषयों, कषायों की ओर न जा सके।
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव