विभाव विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- विभाव को हटाना ही स्वभाव को पाना है, विभाव को हटाये बिना स्वभाव का परिचय नहीं हो सकता।
- विज्ञान स्वभाव को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि वह विभाव को छोड़ना नहीं चाहता ।
- विकार निकल जाने से सही वस्तु का सही-सही स्वाद आने लगता है।
- आत्मा के भावों को बाहर लाते समय जीव विभाव रूप परिणमन कर जाता है, इसलिए प्रायश्चित का भागीदार होता है।
- विभाव भाव ही मद पैदा करते हैं।
- विभाव ज्ञान हमेशा खतरा पैदा करता है।
- स्वभाव का श्रद्धान न होने पर विभाव को छोड़ने की बात ही नहीं होती, राग को छोड़ने से पहले राग मेरे अंदर विद्यमान है, ऐसा श्रद्धान करना अनिवार्य है।
- हमारा स्वभाव वर्तमान में शक्ति के रूप में विद्यमान है, अभिव्यक्ति के रूप में नहीं।
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