वात्सल्य अंग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- माँ का प्रेम बेटे पर अकृत्रिम होता है गाय का बछड़े से जो स्नेह है, वह बिना प्रशिक्षण के सहज होता है, इसी का नाम वात्सल्य है।
- सहजता में जो रस आता है वह कृत्रिमता में नहीं आता। जैसे पेड़ के ही पके आम के रस एवं पाल में पके आम के रस में अंतर होता है।
- श्री रामचन्द्रजी ने वज़कर्ण के प्रति वात्सल्य होने के कारण राजा सिंहोदर को बाँध लिया था।
- आज वात्सल्य के अभाव में धर्म की अप्रभावना हो रही है।
- भटके हुए को सहारा सहानुभुति देते हुए पुनः रास्ते पर लाना ऐसा कार्य वात्सल्य अंग वाला ही कर सकता है।
- गुरुओं के प्रति वात्सल्य नहीं रखा जाता बल्कि उनके प्रति भक्ति भाव से समर्पित होना होता है।
- वात्सल्य अंग का पालन करने से हमारा सम्यग्दर्शन पुष्ट होता है।
- गाय जो अपने बछड़े के प्रति भाव रखती है, वह अन्य किसी पशु से ज्ञात नहीं होता।
- वत्स से वात्सल्य शब्द की उत्पत्ति होती है।
- वत्स के प्रति जो गाय का प्रेमभाव है, वही वात्सल्य है।
- सभी जीवों के प्रति वात्सल्य एवं मैत्री का भाव रखने से तीर्थकर प्रकृति का बंध होता है।
- सोलहकारण भावनाओं में जो वत्सलत्व शब्द आया है, उसका अर्थ है प्रकर्ष रूप से जो भगवान के वचन मिले हैं, उसके प्रति एवं उसमें आस्था रखने वालों के प्रति वात्सल्य भाव का होना।
- जब तक मुक्ति न हो तब तक मोक्षमार्गी को अपने साधर्मियों से हिल-मिल कर रहना चाहिए।
- चारणऋद्धि धारी मुनिराज कभी अकेले नहीं मिलते, वे सहधर्मी साथ-साथ ही चलते हैं।
- सधर्मी से कभी विसंवाद न करें, वात्सल्य की कमी के कारण ही विसंवाद होता है।
- वात्सल्य अंग आपस की कलुषताओं से बचा लेता है।
- व्यवहार में वात्सल्य के बिना एक पल भी चल नहीं सकता।
- व्यवहार में एक-दूसरे के साथ हिल-मिलकर चलेंगे तो विश्व का कल्याण होने में देर नहीं लगेगी।
- जिसने पूर्व पर्याय में वात्सल्य की भावना भायी ऐसे तीर्थकर बालक को अब शचि आदि गोद से नीचे नहीं रखने देती।
- जब छोटे बड़ों की विनय/आदर करते हैं, उन्हें सम्मान देते हैं तब बड़ों से उन्हें अपने आप वात्सल्य मिल जाता है।
- वात्सल्य के अभाव में हमारा व्यवहार तपे हुए दूध के समान है, उसे कोई छूना भी पसंद नहीं करेगा।
- वात्सल्य अंग के धारी गुरुदेव खोट पर चोट लगाते हैं और अंदर से सपोर्ट देते रहते हैं।
- वात्सल्य के अभाव में व्यवहार अभिशाप सिद्ध हो जायेगा।
- धर्म की प्रभावना वात्सल्य के बिना हो ही नहीं सकती।
- मिथ्यात्व रागादि सम्पूर्ण बाह्य पदार्थों में प्रीति को छोड़कर रागादि-विकल्पों की उपाधि रहित अभेद रत्नत्रय में प्रीति करना निश्चय वात्सल्य अंग है।
- जो व्यवहार वात्सल्य में निष्णात रहता है, वही निश्चय वात्सल्य को प्राप्त करता है।
- वात्सल्य अंग में विष्णुकुमार मुनिराज प्रसिद्ध हुए हैं।
- वीतराग मार्ग पर बढ़ने पर भी कुछ राग विद्यमान रहता है, इस वात्सल्य पर्व (रक्षाबंधन पर्व) से ज्ञात होता है।
- वीतरागी अपने लिए कठोर होते हैं लेकिन सबके लिए नहीं यह भी इस वात्सल्य पर्व (रक्षाबंधन पर्व) से ज्ञात होता है।
- जैसे शरीर में आठ अंग होते हैं, वैसे ही सम्यग्दर्शन में आठ अंग होते हैं, उनमें वात्सल्य को हृदय की उपमा दी गई है।
- गाय वत्स (बछड़े) को सींग नहीं दिखा सकती बल्कि जिव्हा के माध्यम से लाड़ करती है लार (जीभ से चाटती है) के माध्यम से प्यार करती है।
- लाड़ सारी कलुषताओं से बचा देता है। गरिष्ट से गरिष्ट पदार्थ भी लार के माध्यम से पच जाता है।
- वात्सल्य अंग से रोता हुआ व्यक्ति भी हँसने लगता है।
- वात्सल्य के बिना एक पल भी चल नहीं सकता इसके माध्यम से तीर्थकर प्रकृति का बंध होता है।
- लार को लालारस कहा जाता है, लालारस के स्थान पर लावारस आ जावेगा तो क्या होगा ? लावा से समुद्र भी सूखने को हो जाता है।
- प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में लालारस, वात्सल्य से परिचित हो।
- एक दूसरे का व्यवहार पच जाए इसलिए सम्यग्दर्शन में वात्सल्य अंग रखा है।
- छोटे बड़ों की विनय करें और बड़े छोटों को वात्सल्य दें, तभी समाज में विकास हो सकता है।
- जिसके प्रति वात्सल्य रहता है, उन्हें सिर पर ना बिठायें।
- भगवान से वात्सल्य नहीं होता उनके प्रति भक्ति की जाती है।
- दूसरे के दुख को देखकर आँखों में पानी आना धर्म प्रिय की निशानी है।
- धन प्रिय बहुत बन लिया अब धर्म प्रिय भी बनो।
- स्व के साथ पर को भी देखना चाहिए। आज विष्णुकुमार महाराज जैसा नहीं कर सकते क्योंकि उतनी ऋद्धि, सिद्धि नहीं है, फिर भी जितना है उतना सहधर्मी के प्रति तो कर सकते हैं।
- अन्य जीवों को भी सहारा देकर ऊपर उठाना चाहिए यदि उनके पास निजी उपादान होगा तो वह उन्नति कर जावेंगे।
- वे सैनिक सीमा के पार रहकर विपक्षियों को भगाते रहते हैं, तब कभी हम और आप यहाँ शांति से धर्मध्यान कर सकते हैं।
- सक्रिय अनुकम्पा के बिना सम्यग्दर्शन टिक नहीं सकता।
- काव्य में भी यदि वात्सल्य रस नहीं है तो सूखा, नीरस-सा लगता है, आनंद नहीं आता।
- गुरु का वात्सल्य अनुशासन से भरा हुआ होता है, वे खोट पर चोट करते हैं और अंदर से सपोर्ट भी देते हैं।
- आप विनय करिये तो आपको वात्सल्य मिलेगा। पाने में लिए कुछ तो देना पड़ेगा। दूसरे के गुणों को देखने का प्रयास करिये यही वात्सल्य भावना है।
- रुक्मणि से प्रद्युम्न को वात्सल्य तब मिला जब वह विद्या के माध्यम से बच्चा बन गया।