स्थितिकरण अंग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- धर्म स्नेही जनों के द्वारा सम्यग्दर्शन अथवा चारित्र से भी विचलित होते हुए पुरुषों का पुन: धर्म में स्थिर करना स्थितिकरण अंग है।
- यदि हम दूसरे को उठाना चाहते हैं तो हमें ऊँचे स्तर पर खड़े होना आवश्यक है।
- कर्मों के योग में ऐसे निमित्त जुड़ते हैं कि जिसके द्वारा सम्यग्दर्शन में स्खलन आ जाता है, वैसे भी स्खलित होना तो मानव का स्वभाव ही है।
- धर्मात्मा पर आई हुई आपत्ति को श्रद्धा, विवेक व चारित्र के माध्यम से दूर करना स्थितिकरण अंग कहलाता है।
- राहगीर गिरे को उठाता है उसी प्रकार मोक्षमार्ग में साथ चलने वाले गिर जावें तो उन्हें उठाकर साथ लेकर चलते जाओ, इसी का नाम स्थितिकरण है।
- निश्चय से उन्मार्ग में जाते हुए अपने मन को पुन: सन्मार्ग में स्थिर करना स्थितिकरण कहलाता है।
- अपने भाव बार-बार गिर जाते हैं, उन्हें पुन: स्वयं संभाल लेना बुद्धिमत्ता है।
- स्थितिकरण के लिए ज्यादा ज्ञान की आवश्यकता नहीं है, अंदर से भाव होना चाहिए, वात्सल्य के साथ टूटे-फूटे शब्द भी काम कर जाते हैं।
- स्थितिकरण अंग में वारिषेण मुनिराज प्रसिद्ध हैं।