शरण विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- चार शरण दर्पण के समान है, वे सभी आत्माभिमुख हैं, उन्हें याद कर हम भी अपनी आत्मा की शरण ले लेते हैं। दर्पण को देखने का अर्थ स्वयं को देखना है, इसलिए आत्मस्थ को देखने से आत्मा की याद आ जाती है।
- जो आत्मा की गहराई में उतर जाते हैं, वे आत्मज्ञ हो जाते हैं और वही हमारे लिए शरणभूत हो जाते हैं।
- संसार में अंतिम शरण आत्मा ही है।
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