शास्त्र विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- शास्त्र विषयक राग साधु को सुबह की लालिमा के समान है।
- शास्त्र-स्वाध्याय से कषायों का उपशम होना चाहिए, कषाय संक्लेश नहीं होना चाहिए।
- बाजार के भाव के बारे में अखबार पढ़ते हो तो आत्मा के भाव के बारे में जानने के लिए शास्त्र स्वाध्याय करना चाहिए।
- वीतराग सर्वज्ञ के वचन प्रमाण हैं, ऐसा मन में निश्चय करके उनके कथन में विवाद नहीं करना चाहिए। क्योंकि विवाद सें रागद्वेष उत्पन्न होते हैं और रागद्वेष से संसार की वृद्धि होती है।
- जैसे सूर्य के प्रकाश व प्रताप में कभी कमी नहीं आती, चाहे जब उसको ग्रहण कर सकते हो। वैसे ही जिन शास्त्रों को कभी भी पढ़ो, इनसे हमेशा ज्ञान व वैराग्य ही प्राप्त होता है।
- जिनके वैराग्य की ओर कदम बढ़े हैं और जो बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें जिन शास्त्र मील के पत्थर सिद्ध होते हैं।
- अध्यात्म ग्रन्थ में पहले शुद्ध को ही नमस्कार किया जाता है, लेकिन जिनके प्रसाद से, कृपा दृष्टि से यह मोक्षमार्ग मिला है, उनको भी नमस्कार किया गया है।
- जिनेन्द्र भगवान के वचनों को औषधि कहा है, जो इसका सेवन करता है उसके भय, रोग नष्ट हो जाते हैं।
- जो कर्ममल मिथ्यात्व, रागादि आत्मा में आ गये हैं, संचित हो गये हैं, उन्हें निष्कासित करने के लिए जिनेन्द्र भगवान की वाणी ‘त्रिफला रूप' औषधि है।
- जिससे मन में एकाग्रता आती हो ऐसा साहित्य पढ़ना चाहिए, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि वह एकाग्रता कर्म निर्जरा में साधक बननी चाहिए।
- शास्त्र स्वाध्याय करते समय कुतर्क नहीं करना चाहिए, कुतर्क करना शास्त्र का अनादर है।
- सूत्र और व्याख्या में जितना अंतर है उतना ही मंत्र और ग्रन्थ में अंतर है।
- जहाँ मंत्र का आलम्बन लेना अनिवार्य है, वहाँ लेना ही चाहिए।
- आगम का आश्रय लेने वाले में राग-द्वेष, मोह कम होते चले जाते हैं, और आत्मा का आश्रय लेने वाले को राग-द्वेष मोह होते ही नहीं हैं।
- अर्थ-शास्त्र के साथ-साथ थोड़ा त्याग-शास्त्र पढ़ना भी आवश्यक है वरन् अर्थ (धन) अनर्थ का कारण बन जावेगा।
Edited by admin