सेवा विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- सेवा के माध्यम से हम आपस में सुख-दु:ख समझ सकते हैं।
- अचेतन द्रव्य (धन) को जनसेवा में लगाना चाहिए।
- सेवा के समय यदि ख्याति, लाभ, नाम, बड़ाई की बात आ जाती है तो सब किरकिरा हो जाता है। कषाय अभिमान के साथ नहीं बल्कि निष्ठा के साथ दान दें।
- दूसरे के दु:ख को दूर करने के भाव करते हैं तो यह अपायविचय धर्म ध्यान है।
- परमार्थ के अभाव में अर्थ का कोई मूल्य नहीं।
- पार्थिव जीवन के साथ-साथ पारमार्थिक जीवन भी जीना चाहिए।
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