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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • संस्कार

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    संस्कार विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. विषय मात्र तात्कालिक ही होते हैं, लेकिन धार्मिक संस्कार तात्कालिक और त्रैकालिक सुख देने वाले होते हैं।
    2. आज के युग में अण्डे को शाकाहार और दूध को माँसाहार घोषित किया जा रहा है, इसलिए कहना पड़ रहा है कि देश में धार्मिक संस्कारों की अत्यन्त आवश्यकता है।
    3. संस्कार बचाये रखना चाहते हो तो बच्चों का निर्यात बंद कर दो उन्हें विदेश भेजना बंद कर दो, अंतर्राष्ट्रीय की जगह आत्मजगत् की ओर बढो।
    4. नगर के पास एक धार्मिक स्थल अवश्य होना चाहिए, नसिया आदि, ताकि वहाँ जाकर ध्यान, चितंन किया जा सके, आज ऐसा स्थान न होने से युवा वर्ग कश्मीर आदि जाने लगे हैं, इसलिए धार्मिक संस्कार समाप्त होते जा रहे हैं।
    5. जीवन में ऐसे संस्कार डालो ताकि रत्नत्रय मावा के रूप में रहा आवे और शरीर व कषाय रूपी पानी समाधि की अग्नि में आहूत हो जावे।
    6. जीवन में वर्गीकरण के अभाव में आज संस्कार एवं संस्कृति का अभाव होता चला जा रहा है।
    7. बच्चों को दान धर्म की बातें सिखाओ। करुणा, दया, परोपकार के संस्कार डालो, तभी संस्कृति सुरक्षित रह सकेगी।
    8. इस बुन्देलखण्ड में अद्वितीय सम्पदा देखने को मिली है वह यह है कि यहाँ की जनता में देव-शास्त्र व गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा है।
    9. जीवन का मूल्यांकन धन, वैभव से न करके वस्तुत: उच्च विचारों, संस्कारों के माध्यम से किया जाता है।
    10. यह सब संस्कार का ही प्रभाव है कि विषयों के बीच में रहकर भी उन्हें बिना ग्रहण किए संतुष्ट है।
    11. पहले के लोगों में भाव/संस्कार उज्वल थे, उन्हीं से आज धर्म टिका हुआ है।
    12. वही व्यक्ति धर्म की बात कर सकता है, जिसके जीवन में सात्विकता आ जाती है।
    13. आज के संस्कार उच्छंखल बनाने वाले हैं, आध्यात्मिक विकास को रोकने वाले हैं।
    14. आज साहित्य का सृजन अच्छा इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि आज विषयों की चिन्ता में लगे मानव को चिन्तन के लिए समय ही नहीं है।
    15. आज जीवन का स्तर जमीन में घुस गया है, अब उसे और नीचे मत ले जाओ।
    16. आगे में गुण तभी रह सकते हैं जबकि पीछे में गुण पहले से ही विद्यमान हों।
    17. पेड़ की जड़े कभी अंकुर की तरह उपर नहीं आती, जैसे ही अंकुर होता है वैसे ही जड़े पाताल कि ओर चली जाती हैं। इसी प्रकार आदर्श के अंकुर के साथ जड़ें भी पाताल (इतिहास) से संबंधित होना चाहिए।
    18. पूर्व संस्कार के साथ चलोगे तो उपदेश का कोई प्रभाव पड़ेगा नहीं।
    19. संसारी प्राणी के ऊपर मोह के अलावा कोई संस्कार नहीं पड़े।
    20. संस्कार के अभाव में करोड़पतिपना निरर्थक है।
    21. विदेश की अच्छाई को अपनाइये विदेश नीति को मत अपनाइये।
    22. देश विषयों का गुलाम होता जा रहा है, स्वाभिमान गायब होता चला जा रहा है। अर्थनीति फेल हो जाती है लेकिन परमार्थ नीति फेल नहीं होती इसका ध्यान रखें।
    23. सात्विक जीवन रखने से सात्विकता आती है एवं प्रतिभा का विकास होता है।
    24. प्रतिभा तो अंदर रहती है, संस्कारों के माध्यम से बाहर आती है।
    25. व्यसनों से शारीरिक स्वास्थ्य की हानि, धर्म की हानि, अर्थ की हानि होती है, इसलिए व्यसनों से बचना चाहिए।
    26. जीवन में उन्नति चाहते हो तो अपने खान-पान को, वाणी को व अपने व्यवहार को पवित्र बनाइये।
    27. इस बहुमूल्य समय का उपयोग सदाचरण के पालन करने में कीजिए।
    28. जब हम संस्कार पवित्र रखेंगे तभी महावीर जैसी आत्मायें हमारे घर में जन्म लेंगी।
    29. गर्भवती होने पर सीता तीर्थयात्रा पर जाती थी तभी उनके बच्चे संस्कारवान बने अपने पिता को भी हरा दिया। आप विदेशी संस्कार डालकर बच्चे का उद्धार करना चाहते हैं, यह सम्भव नहीं है।
    30. आप अपने बच्चों की केवल अर्थव्यवस्था को लेकर पढ़ाई कराते हैं परमार्थ के बारे में नहीं सोचते।
    31. आत्मा की बात सुनने के लिए पूर्व में कुछ संस्कार डालना भी अनिवार्य होते हैं।
    32. इंजेक्शन लगाते समय उस स्थान को स्प्रिट से साफ करना पड़ता है, ये पूर्व संस्कार अनिवार्य है ; विज्ञान भी इसे स्वीकारता है | 
    33. देशना लब्धि (जिनवाणी सुनने) की पात्रता उसी में है, जो भक्ष्याभक्ष्य का विवेक रखता है। सम्यग्दर्शन की भूमिका उसी में आती है, योग्यता आती है, जो व्यसन मुक्त हो। तीर्थंकरों के जीवन के संस्कारों को जब तक हम अपने जीवन में नहीं उतारेंगे तब तक हमारा उनसे सम्बन्ध नहीं जुड़ सकता।
    34. शिक्षण और संस्कार में बहुत अंतर होता है, संस्कारवान् ही जानता है कौन-सा पौधा अनाज का है कौन-सा घास का ?
    35. अपनी संतान धर्म में समर्पित होकर जीवनयापन करें, ऐसे संस्कार डालते जाओ।
    36. संस्कार इत्र के समान होने चाहिए, उन्हें बताना न पड़े अपने आप लोगों को उसकी महक आ जावे। यदि संतान लोक-कल्याण का मार्ग अपनाती है तो उनके माता-पिता को भी बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है। जो संस्कार हमें पूर्वजों से मिले हैं, वे आगे की पीढ़ी को सिखाते जाओ वरन् पीढ़ी भटक जावेगी।
    37. आज की समस्याओं का समाधान संस्कार से ही सम्भव है।
    38. संस्कार के अभाव में जीवन की कीमत कोडी की ही रहेगी।
    39. बचपन के संस्कार वृक्ष की जड़ के समान हैं, यदि जड़ में कीड़ा लगा हो तो पौधे की वृद्धि नहीं हो सकती उसी प्रकार कुसंस्कार के कारण बालक के जीवन का विकास नहीं हो सकता।

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