संसार विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- संसारी प्राणी संयोग के कारण दु:ख उठाते हैं, संसार के सभी संयोग दु:ख के ही कारण हैं।
- गरीब-अमीर सभी को वही कफन, वही अर्थी, वही श्मशान घाट मिलेगा, यह सृष्टि का अटल नियम है।
- संसार में सुख नमक युक्त खारे जल के समान हैं, जिससे कभी प्यास शांत नहीं होती, बल्कि गला और सूखता है। संसार में मीठा पानी है ही नहीं, इसलिए तृप्ति संभव ही नहीं है |
- संसार स्वभाव से परिचित होकर उससे दूर रहने वाले मनुष्य दुर्लभ हैं।
- संसार-सागर में जन्म, जरा व मृत्यु रूपी लहरें उठती रहती हैं, इसमें मोह का मगरमच्छ मुख फाड़े खड़ा रहता है, इसलिए साधु जन सागर में न रहकर सागर के तट पर रहते हैं।
- यह संसारी प्राणी वास (दुर्गंध) आने वाले शरीर में बसा है।
- यह संसारी जीव इस शरीर के कारण दु:ख उठाता है, वेदना का रस पीता है, फिर भी इसी को पुनः चाहता है।
- संसारी प्राणियों को सुख मिलना अंधे के हाथ बटेर के समान है, अर्थात् कठिन है, असंभव हैं |