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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सम्यक दर्शन

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    सम्यक दर्शन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. पार्श्वनाथ भगवान को केवलज्ञान की उत्पत्ति होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि कमठ के जीव को सम्यक दर्शन की प्राप्ति होना महत्वपूर्ण है। हमेशा अनुभव तर्क से पृथक् रहता है, अनुभव होते ही तर्क समाप्त हो जाता है।
    2. गृहस्थों का सम्यक दर्शन उस गन्ने की तरह है, जिससे चारित्र रूपी गुड़ नहीं बनता।
    3. केवली का सम्यक दर्शन प्रत्यक्ष पदार्थ को जानकर परमावगाढ़ सम्यक दर्शन होता है, यह मन के द्वारा नहीं होता है, इसे केवल सम्यक्त्व भी कहते हैं, यहाँ पर सम्यक दर्शन को अनुभूति प्राप्त हो जाती है।
    4. सम्यक दर्शन के बिना ज्ञान, तपादि गधे पर चंदन के भार के समान है।
    5. सम्यक दर्शन अनिवार्य प्रश्न है, इसे हल किए बिना व्रत, तप आदि प्रश्न हल कर भी दो तो मोक्षमार्ग में फेल ही माने जाओगे।
    6. आज ऐसे नशीले पदार्थों का सेवन किया जा रहा है, जिनके सेवन से सम्यक दर्शन रूपी सम्पदा लुट जाती है, वात्सल्य, दया जैसे सदगुण नष्ट हो जाते हैं, इन कुसंस्कारों से समाज को बचाना होगा।
    7. सम्यक दृष्टि दूसरे के दु:ख का वैरी रहता है, वह दूसरे के दु:ख को दूर करने का भरसक प्रयास करता है।
    8. सम्यक दर्शन के बिना मोक्षमार्ग में किया गया कार्य कुछ भी सुख नहीं दे सकता।
    9. अविरत सम्यक दृष्टि जीव स्वयं के प्राणों की रक्षा तो कर लेता है, लेकिन दूसरे प्राणियों की रक्षा का संकल्प नहीं ले पाता, उसके प्राणी संयम नहीं पलता।
    10. हमारा जितना श्रद्धान आत्म स्वरूप की ओर दृढ़ होता है उतनी ही अधिक कर्म की निर्जरा होती है।
    11. ज्ञान का मद हो सकता है, पर सम्यक दर्शन मद रहित ही होता है।
    12. सम्यक दर्शन रूपी बीज का उपयोग करो यही स्वदेशी है, बाकी सब विदेशी बीज हैं।
    13. पुण्यवान् व्यक्ति ही सम्यक दर्शन की सेवा करता है।
    14. जो संसार विच्छेद का प्रथम कारण है, ऐसे सम्यक दर्शन का हमेशा गुणगान करना चाहिए।
    15. विश्वास को जब तक अनुभूति प्राप्त नहीं होती तो नीरस जैसा लगता है।
    16. ये अभिषेक पूजनादि क्रियायें सम्यक दर्शन के कारण हैं ये पूजनादि सम्यक्त्ववर्धिनी क्रियाएँ हैं। सम्यक दर्शन में प्रथम हैं।
    17. निष्क्रिय सम्यक दर्शन नहीं, सक्रिय सम्यक दर्शन बने जो दूसरों के प्रति अनुकम्पा रखे। करुणा, दया, वात्सल्य के साथ ही सक्रिय सम्यक दर्शन होता है।
    18. जीवित जीवन वही है, जिसमें अनुकम्पा सहित सम्यक दर्शन होता है।
    19. अपने ऊपर दया करते हुए संसार के ऊपर भी दया करनी चाहिए।
    20. सम्यक दर्शन की मणिका को शुद्ध करना चाहते हो तो अजीव तत्व को (नोट को) खर्च करके, दान करके जीवतत्व की रक्षा करो, पशुओं का संरक्षण करो।
    21. गाढ़ श्रद्धान होने पर दया का स्रोत खुल जाता है।
    22. सम्यक दर्शन जीवन का एक सहारा बन जाता है। सम्यक दर्शन जीव को स्वस्थ्य बना देता है।
    23. दूसरे को सम्यक दृष्टि बनाने का भाव तो रखो पर ऐनकेनप्रकारेण सम्यक दृष्टि बनाने का भाव छोड़ दो क्योंकि चिकित्सा समझदारी से की जाती है।
    24. सम्यक दर्शन एक ऐसी औषधि है, इसे प्राप्त करने के उपरान्त लड़ाई-झगड़े समाप्त हो जाते हैं।
    25. ज्ञान, वैराग्य रूप शक्ति सम्यक दृष्टि के पास रहती है, इन शक्तियों से ही वह बंधे हुए कर्मों की निर्जरा करता है।
    26. एक व्यक्ति अपने आप को एक अकेला समझ लेगा तो एकत्व की भावना अपने आप आ जावेगी। फिर अज्ञान का टकराव समाप्त हो जावेगा। सम्यक दृष्टि इसी को बोलते हैं। दुनियाँ को भूल जाओ कोई बात नहीं पर अपने स्वरूप को मत भूलना।
    27. सम्यक दर्शन के गुणों में एक आस्तिक्य गुण है ‘मैं भी हूँ" ऐसा स्वीकारना।
    28. विवेक के साथ करुणा होती है, सही चिकित्सा करने वाले ही करुणावान् हैं, यही सही सम्यक दर्शन है।
    29. क्षायिक सम्यक दर्शन देवों को नहीं होगा भले ही वे केवली के पादमूल में चले जावें। गुरु (केवली) के सान्निध्य में ही होता है, क्षायिक सम्यक दर्शन।
    30. जीव सम्यक दर्शन के साथ कहीं भी चला जावे हमेशा सुखी रहता है।
    31. जब ऐसा स्वरूप है भगवान का तो हम भक्त को भी श्रद्धान कर लेना चाहिए कि हमारा स्वरूप भी यही है। फिर भविष्य के बारे में सीमा रेखा खिंच जाती है।
    32. सम्यक दर्शन की काया तब टिकती है जब संवेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य एवं प्रशम भाव रूप गुण रहते हैं। इन गुणों को साकार रूप देने से अमूर्त सम्यक दर्शन भी मूर्तत्व धारण कर लेता है। दृष्टि को मजबूत (पूज्य) बनाने वाले पैर (आचरण) होते हैं।
    33. सम्यक दृष्टि स्वार्थी नहीं परमार्थी होते हैं, वे परमार्थ की उपासना करने वाले होते हैं। मूर्त सम्यक दर्शन आँखों से देखना चाहें तो उसे प्रयोग का रूप देना चाहिए, उपकार के भाव आना चाहिए। सम्यक दृष्टि किसी की प्रतीक्षा नहीं करता वह स्वयं प्रयोग करने लगता है। अपना भी कर्तव्य कुछ वस्तु है, अविरत सम्यक दृष्टि का भी कुछ कर्तव्य होता है।
    34. सम्यक दृष्टि संयम की ओर दृष्टि रखता है। वह संसार में नहीं बल्कि संसार के किनारे पर रहता है।
    35. संसार से विरति सम्यक दृष्टि को ही आती है, सम्यक दृष्टि मोह को जहर की भाँति समझता है।
    36. दृष्टि में सम्यक् होने पर मोहमार्गी मोक्षमार्गी बन जाता है।
    37. सम्यक दर्शन अनगढ़ पत्थर है अविरत के साथ यदि उसे चारित्र रूपी शान पर चढ़ाते हैं तो गले का हार बन जाता है, वह केवल सम्यक्त्व में बदल जाता है।
    38. सम्यक दर्शन इतना सरल नहीं है, उसके लिए लोभ का त्याग करना अनिवार्य है।
    39. आप सम्यक दर्शन के साथ पैदा होते तो विदेह में जन्म होता। यदि वहाँ सम्यक दर्शन के साथ जन्म होता है तो वह संयमासंयम व संयम लेगा ही यह नियम है।
    40. आत्मतत्व पर श्रद्धान होते ही आत्म संतुष्टि प्राप्त हो जाती है।
    41. जिसका श्रद्धान मजबूत होता है वही दया को मजबूत रखता है और सिद्धान्त को भी मजबूत रखता है। वरन् यह समयसार को पढ़कर कह देगा यह तो परघात नाम कर्म के उदय से दूसरे का घात हो रहा है, मैं क्या कर सकता हूँ?
    42. सम्यक दृष्टि विषयों से राग नहीं रखता क्योंकि विषयों में आत्मा के कोई गुण नहीं होते और उनसे आत्मा के गुणों की पुष्टि भी नहीं होती।
    43. जो पदार्थ जिस रूप में है, उसे उसी रूप में स्वीकारना सम्यक दर्शन है।
    44. सम्यक दृष्टि अपने भावों के माध्यम से ही श्रद्धान करता है, सात तत्व और देव, शास्त्र एवं गुरु(परद्रव्य) निमित्त मात्र हैं।
    45. सम्यक दर्शन तभी जीवित रह सकता है, जब अनुकंपा जीवन में उतर गयी हो। सम्यक दृष्टि को दूसरों के कष्ट को देखकर कष्ट दूर करने के भाव उमड़ आते हैं।
    46. पेड़ में ऊपरी अस्थिरता भले हो लेकिन जड़ में कोई अस्थिरता नहीं होती तभी वह अडिग खड़ा रहता है।
    47. जब गुणीजनों को देख कर प्रमोद भाव हो जावे, दुखियों को देखकर करुणा भाव आ जावे और सभी के अस्तित्व पर विश्वास हो जावे तो समझना हमें सम्यक दर्शन की प्राप्ति हो गयी है।

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