सम्यक दर्शन में आठ अंग - निशंकित अंग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जैसा देव, शास्त्र, गुरु का स्वरूप आगम में कहा गया है वैसा ही है, अन्य भी नहीं है और अन्य प्रकार भी नहीं है, ऐसा श्रद्धान रखना निशंकित अंग है।
- जिनेन्द्र भगवान के वचनों पर शंका न रखना (करना) निशंकित अंग है।
- तलवार की धार पर लोहे में पानी की बूंद अकम्प रहती है, इसी प्रकार नि:शंकित अंग वाले का सम्यक दर्शन संशय रहित अकंप होता है।
- निशंकित अंग वाले की पहले की अपेक्षा दृष्टि बलवती बनी रहती है।
- बार-बार उपयोग करने से तलवार की धार में कमी आ जाती है, लेकिन सम्यक दर्शन रूपी दृष्टि बार-बार श्रद्धान से बलवती होनी चाहिए।
- जिसका जो स्वरूप आगम में कहा है-उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए वरन् बड़ों की आसादना हो जावेगी और ऐसा होना व्यवहार-कुशलता नहीं मानी जाती।
- मिथ्यात्व के ऊपर भी हेय रूप श्रद्धान रखो कि ये संसार का कारण है ऐसा नि:शंक होकर श्रद्धान रखो।
- नि:शंकित अंग में अंजनचोर प्रसिद्ध है जिसने जिनदत सेठ पर श्रद्धा रखकर णमोकार मंत्र का उच्चारण करते हुए सींके को काट दिया और आकाशगामिनी विद्या सिद्ध कर ली।