Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सल्लेखना

       (0 reviews)

    सल्लेखना विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. सल्लेखना दो प्रकार ही होती है-काय और कषाय सल्लेखना। सर्प की काँचली छोड़ना काय सल्लेखना व अंदर का जहर छोड़ना कषाय सल्लेखना है। अर्थात् शरीर काँचली की भाँति और कषाय जहर की भाँति है।
    2. अविनश्वर जीवन की प्राप्ति मृत्यु महोत्सव मनाने से होती है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र आदि इस दिगम्बर मुद्रा को स्वीकारते हैं।
    3. इस शरीर को जेल ही मानो यह बंधन और दु:ख का ही कारण है। जैसे बच्चे पुराने कपड़े को छोड़ने के लिए तैयार रहते है, वैसे ही साधक को शरीर का त्याग करने के लिए सल्लेखना के लिए तैयार रहना चाहिए वह क्षण तो एक न एक दिन जीवन में आयेगा ही।
    4. यदि घर में आग लग गई हो तो, आग बुझाने का प्रयास करो, यदि बुझाने में सफल न हो तो स्वयं को बचा लेना चाहिए। ठीक वैसे ही शरीर में रोग हो गया हो तो उपचार करो और यदि रोग का प्रतिकार न हो सके तो धर्म को बचा लो, सल्लेखना के माध्यम से शरीर का त्याग कर दो।
    5. मृत शरीर में हर क्षण असंख्यात-असंख्यात जीवों की उत्पति बढ़ती जाती है, इसलिए उसे ज्यादा देर तक रखना ठीक नहीं है।
    6. इस मनुष्य गति में मिला शरीर और आयु का उपयोग कीजिये ताकि वह अंत में समाधि के साथ समाप्त हो।
    7. प्रशमभाव, वैराग्य भाव के साथ क्षण निकाली, तभी समाधि के समय समता आ सकती है।
    8. सल्लेखना के समय तक क्षपक (जो सल्लेखना ले रहे हैं) को मृदु शब्दों से संभाला जाता है।
    9. एक बार भी यदि इस जीव ने विधिपूर्वक समाधिमरण कर लिया तो उत्कृष्ट से दो-तीन भव में और जघन्य से सात-आठ भव में मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
    10. सल्लेखना से डरने वालों को याद रखना चाहिए कि यह शरीर एक न एक दिन अवश्य छूटेगा।
    11. धर्मनिष्ठ गृहस्थ श्रावक भी अंत समय में कह देते हैं अपने घर के सदस्यों से कि यदि मुझे होश न रहे तो मुख में कुछ भी मत डालना, अस्पताल भी मत ले जाना, उसकी सही सल्लेखना हो जाती है।
    12. जैसे विद्यार्थी परीक्षा की प्रतीक्षा व तैयारी करता है, वैसे ही साधक को पहले से ही सल्लेखना की तैयारी करना चाहिए। जैसे ही असंतुलित गाड़ी हो, वैसे ही ब्रेक लगाना प्रारम्भ कर देना चाहिए।
    13.  साता की उदीरणा में भी निर्विकल्प समाधि में नहीं जाया जा सकता।
    14. जीवन के अंतिम समय में सभी को क्षमा करके, सभी से क्षमा माँगकर परिग्रह आदि त्याग कर कषाय को मंद करते हुए शरीर का त्याग करना चाहिए, यही श्रावक की सल्लेखना है।
    15. जब तन में हो व्याधि (रोग), मन में हो आधि और दिमाग में ही उपाधि तो कैसे हो सकती है समाधि ? क्योंकि आधि, व्याधि और उपाधि से रहित होती है समाधि।
    16. अंत समय मानसिक संतुलन ही सब कुछ है, समाधि में सफलता इसी से प्राप्त होती है।
    17. समाधि के समय क्रमबद्ध पर्याय नहीं चलती उस समय णमोकार मंत्र ही काम आता है।
    18. काय सल्लेखना कारण है और कषाय सल्लेखना कार्य है, उसका फल है।

    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...