सामायिक विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- सामायिक में शरीर का चिंतन करें कि यह अशरण है, अशुचि है, अनित्य है, दु:खमय है, संसार रूप है और आत्मा इससे विपरीत है।
- सामायिक में मन, वचन व काय से किसी भी प्रकार से प्रतिकार नहीं किया जाता।
- रागद्वेष से रहित होना सामायिक चारित्र है।
- आर्त-रौद्रध्यान काई के समान है, उसे हटाओ और धर्मध्यान रूप स्वच्छ जल का पान करो, इसी का नाम सामायिक चारित्र है।
- अशुभ विकल्पों के त्याग रूप जो समाधि (ध्यान) है, ऐसा है लक्षण जिसका वह सामायिक है।
- सुख-दु:ख रूप कर्मों का उदय अपने पूर्वकृत् इतिहास के आधार पर आते हैं, उन्हें समता से सहन करना उनसे माध्यस्थ्य होना ही सामायिक चारित्र है।
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