रसना इन्द्रिय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- रसना इन्द्रिय स्वयं कहती है कि बाहर रस ना। बाह्य पदार्थों में रस नहीं है और फिर भी रस माँगती है तो समझना उसके पास सिर ना (बुद्धि नहीं है) फिर भी असर ना हो तो क्या करें?
- रसना इन्द्रिय का लोलुपी सुभौम, चक्रवर्ती की सम्पदा पाकर भी नरकगामी हुआ।
- इन्द्रियों का विषयों की ओर न जाने देना इन्द्रिय दमन कहलाता है।
- रसना इन्द्रिय पर जो नियंत्रण रखता है, वह अकारण अस्वस्थ्य नहीं होता है।
- रसना इन्द्रिय में आते ही वचन बल आ जाता है।
- स्पर्शन और रसना, भोगेन्द्रियाँ मानी जाती हैं।
- अचित्त प्रासुक भोजन (फलादि) से रसनेन्द्रिय विजय नामक मूलगुण का पालन होता है।