प्रत्यक्ष-परोक्ष विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जिसमें आत्मा को ज्ञेय की ओर उपयोग ले जाना पड़ता है, वह परोक्ष ज्ञान है और जिसमें आत्मा को उपयोग बाहर नहीं ले जाना पड़ता वह प्रत्यक्ष ज्ञान है।
- परोक्ष का ही विश्वास किया जाता है, क्योंकि मानना तभी होता है जब तक उसकी साक्षात् अनुभूति नहीं होती।
- मान्यता में विवाद आ जाता है, जबकि प्रत्यक्ष होने पर विवाद समाप्त हो जाता है।
- स्वाध्याय के समय वाद-विवाद होता है और ज्यों ही भगवान् के सामने पहुँचे वाद-विवाद समाप्त, शांति मिल जाती है, यह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष की महिमा है।
- परोक्ष साक्षात् सुख नहीं देता मान्यता में है कि सुख मिलेगा।
- किसी की परोक्ष में निंदा करना हिंसा का प्रतीक है।
- अवधिज्ञान प्रत्यक्षज्ञान होकर भी मर्यादित पदार्थ आदि को जानता है।
- जिसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव रूप व्यवधान उपस्थित हो जाते हैं, उसे परोक्ष कहते हैं।
- परोक्ष ज्ञान के द्वारा भक्ति अच्छी होती है, भक्ति के माध्यम से अपनी प्यास बुझा सकते हैं।
- परोक्ष ज्ञान में ही मन को संयत बनाने की बात होती है, प्रत्यक्ष ज्ञान के बाद कुछ नहीं होता।
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