प्रथमानुयोग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ें आगे बढ़ें, अभी नहीं तो अगले भव में तो मोक्षमार्ग की भूमिका बन ही जावेगी। अगले भव की इस जीवन में भूमिका बना सकते हैं।
- हमारे साहस को बढ़ाने वाली महापुरुषों की गौरव गाथा को पढ़ना चाहिए। उनका गुणानुवाद करने से हमारे अंदर शक्ति जागृत हो जाती है।
- आदर्श पुरुषों को याद करते ही हमारा जीवन लहलहा उठता है। दर्पण को जितनी बार देखो उतनी कमियाँ (अपने में) दिखेंगी।
- महापुरुषों के प्रत्येक कार्य में, श्वांस में, परोपकार के भाव रहते हैं।
- उन राम, महावीर ने वह आस्था जमायी थी तभी इन सभी जीवों को रास्ता मिला है।
- आपके चरण भी उनके चरणों के साथ आदर्शो पर चलें आपके चरण भी पवित्र हो जावेंगे।
- रागी, द्वेषी एवं मोही पर प्रथमानुयोग का ही सही प्रभाव पड़ता है।
- महापुरुषों के जीवन को पढ़कर संसारी प्राणी प्रशमभाव के साथ अपने जीवन को सम्हाल सकता है।
- चार कषायों को छोड़ने का ही आचार्यों ने प्रयास किया है एवं उपदेश ग्रन्थ लिखे हैं।
- उपन्यास नहीं ऐसे चारित्र पढ़ो, ताकि आचरण बदल जावे।
- इरादों को मूर्तरूप देने के लिए इतिहास देखना पड़ता है।
- पुराण-ग्रन्थ पढ़ने से दुर्भाव भी सद्भाव के रूप में बदल जाते हैं।
- यदि अहंकार को छोड़ना चाहते हो तो पुराण, ग्रन्थ पढ़ा करो।
- पुराण-ग्रन्थों से अदभुत चीजें मिलती हैं। जिससे प्रेरणा मिलती है उनको आत्मसात् करने से पता चलता है कि यह जीवन कितना महत्वपूर्ण है।
- पुराण-ग्रन्थों से विकृत मन को बोध प्राप्त हो जाता है।
- तत्व का परायण करने के लिए स्वाध्याय करना अनिवार्य है।
- सबसे बड़ा धन आत्म तत्व है स्वाध्याय के माध्यम से इसका ज्ञान होता है।