प्रशंसा विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- भोजन कराने वालों की प्रशंसा तब तक नहीं करनी चाहिए जब तक भोजन पच न जाये, यह नीति वाक्य है।
- जब तक राजा युद्ध में जीतकर न आ जाये तब तक राजा की प्रशंसा मत करना।
- जब तक नारी वृद्धा नहीं हो जाती भले शीलवती हो प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
- जब तक साधना पूरी नहीं हो जाती, तब तक अपनी साधना की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
- नाविक की प्रशंसा नाव के उस पार जाने तक नहीं करनी चाहिए। जैसे बीज बोने के उपरांत किसान की प्रशंसा तब तक नहीं करनी चाहिए जब तक वह फसल को काटकर घर नहीं ले आता ।
- आप किसी की प्रशंसा नहीं कर सकते तो एक नियम ले लो कि हम कभी किसी की निन्दा नहीं करेंगे।
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