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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रसन्नचित्त

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    प्रसन्नचित्त  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. हमेशा प्रसन्नचित रहना चाहिए, प्रसन्नचित रहने से कर्मों के वेग में भी आत्मा का संवेग भाव काम करता रहता है, इसलिए फूल की तरह हमेशा ‘प्रसन्न' रहना चाहिए।
    2. प्रसन्नचित्त होकर ही आवश्यकों का पालन करें, उससे और निखार आ जाता है दिनोंदिन चर्या के प्रति उल्लास बढ़ता जाता है।
    3. रोते हुए दिन निकालने की अपेक्षा मुस्कान के साथ दिन निकाल लो, कैसे निकालें ? प्रभु को देख लो वे हमेशा शांत रहते हैं।
    4. हम दु:खी रहते हैं तो सामने वाले भी दु:खी रहेंगे तो दोनों को असाता का बंध रहेगा, तो क्या आप दूसरों को असाता का बंध कराना चाहते हैं?
    5. प्रभु! आपने मोक्षमार्ग का प्ररूपण किया पर कुछ भी बदले में चाह, इच्छा नहीं रखी, धन्य है आपकी यह अलौकिक वृत्ति।
    6. आत्महित के साथ-साथ परहित की भी सोच सकते हैं, यह अपायविचय धर्म्यध्यान में आ जाता है।

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