प्रसन्नचित्त विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- हमेशा प्रसन्नचित रहना चाहिए, प्रसन्नचित रहने से कर्मों के वेग में भी आत्मा का संवेग भाव काम करता रहता है, इसलिए फूल की तरह हमेशा ‘प्रसन्न' रहना चाहिए।
- प्रसन्नचित्त होकर ही आवश्यकों का पालन करें, उससे और निखार आ जाता है दिनोंदिन चर्या के प्रति उल्लास बढ़ता जाता है।
- रोते हुए दिन निकालने की अपेक्षा मुस्कान के साथ दिन निकाल लो, कैसे निकालें ? प्रभु को देख लो वे हमेशा शांत रहते हैं।
- हम दु:खी रहते हैं तो सामने वाले भी दु:खी रहेंगे तो दोनों को असाता का बंध रहेगा, तो क्या आप दूसरों को असाता का बंध कराना चाहते हैं?
- प्रभु! आपने मोक्षमार्ग का प्ररूपण किया पर कुछ भी बदले में चाह, इच्छा नहीं रखी, धन्य है आपकी यह अलौकिक वृत्ति।
- आत्महित के साथ-साथ परहित की भी सोच सकते हैं, यह अपायविचय धर्म्यध्यान में आ जाता है।