परमार्थ विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- स्वार्थ वही सही माना जाता है जिससे परमार्थ की सिद्धि होती है।
- तत्वोपदेश परमार्थ की भावना से ही दिया जाता है।
- तत्व का प्ररूपण करने के लिए स्वार्थ का विमोचन करना अनिवार्य है।
- अर्थ एवं काम पुरुषार्थ श्रावकों को धर्म पुरुषार्थ पूर्वक ही करना चाहिए, तभी जीवन सार्थक हो सकता है।
- साधु उसी को कहते हैं जो परमार्थमय हो क्योंकि परमार्थरत ही मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
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