Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मार्दव

       (0 reviews)

    मार्दव विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. मान के खण्डन के बिना प्रदर्शन तो चलता रहेगा, किन्तु यह जीव अंदर के दर्शन से वंचित रह जावेगा।
    2. अभिमान नहीं बहुमान होना चाहिए।
    3. आत्म स्वरूप का ज्ञान होते ही बाहरी रूप का अभिमान टूट जाता है। 
    4. क्रोध को पहचानने के लिए विशेष मेहनत नहीं लगती मान को पहचानने में देर लगती है। मान से बचने के लिए विवेक आवश्यक है।
    5. ज्वर अंदर खून को जलाता है, वैसे ही यह मान है।हड्डी का ज्वर बहुत दिनों में निकलता है। मान भी मोतीझिरा जैसा अंदर प्रवेश कर गया है।
    6. देव, शास्त्र व गुरुओं के समागम से, उनके दर्शन से अनन्तानुबन्धी कषाय नष्ट हो जाती है। जैसे इन्द्रभूति समवशरण में गया और उसका मान खंडित हो गया।
    7. मानी व्यक्ति अच्छी-अच्छी हस्ती को डुबो देता है।
    8. मान के पीछे लग जाना बहुत बड़ा पागलपन है।
    9. जो मान रूपी हाथी पर आर्जव का अंकुश लगाकर उस पर बैठ जाते हैं, उनको नमस्कार है, वे तीन कम नौ करोड़ मुनिराज उसी में लगे हुए हैं। महान् व्यक्ति ही ऐसा कार्य कर सकते हैं, वे उम्र में छोटे होते हुए भी महान् हैं।
    10. मान को खारेपन से ही तृप्ति मिलती है।
    11. आत्म तत्व, कषायों के कारण भव-भव तक विषाक्त होता चला जाता है।
    12. ज्ञान का प्रदर्शन करना बौनापन है। गहराई में जाने पर बताने की बात ही नहीं होती।
    13. ज्ञान, मान प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनना चाहिए।
    14. संसार में, मैं और मेरेपन को लेकर संघर्ष चल रहा है यह विश्व में संघर्ष का स्रोत है।
    15. मान को जिसने मार दव (मार दिया) उसके मार्दव धर्म उत्पन्न होता है।
    16. चेतन स्वभाव को छोड़कर घनत्व (मान) को स्वीकार कर लेता है क्योंकि वह अपने अस्तित्व को संसार में अलग से कायम रखना चाहता है, जैसे बर्फ जल से पृथक् अस्तित्व बनाये रखना चाहता है।
    17. बर्फ जब अपने घनत्व को (मान को) मार देता है, छोड़ देता है तब वह पानी-पानी हो जाता है।
    18. मान बहुत बड़ा योद्धा है, वह अपने आपको सब कुछ मानता है सामने वाले की कीमत नहीं समझता। अभिमान यहाँ पर चूर-चूर हो जाता है कि पुद्गल (कर्म) के पास ऐसी शक्ति है कि जिसने केवलज्ञान के स्वभाव को नष्ट कर दिया है। वह कहता है मेरे राज्य में केवलज्ञान रूपी सूर्य की एक किरण भी नहीं फूट सकती। बारहवें गुणस्थान के अंत तक वह अपना अधिपत्य जमाये रहता है। यह देखकर मानी प्राणी का मान पानी पानी हो जाता है।
    19. अनंत शक्ति वाला चैतन्य तत्व इन मानादि कषायों के कारण कहाँ छिपा है पता नहीं।
    20. मान इंद्रियों की नहीं बल्कि मन की खुराक है।
    21. मन को मान से बचाना ही साधना की एक चरम सीमा है।
    22. तीर्थंकर चक्रवर्ती होते हुए भी नव निधि, चौदह रत्नादि के स्वामी मुनि बनने के बाद जब नवधाभक्ति के माध्यम से तप में वृद्धि के लिए एक गरीब की कुटिया में आहार लेने जाते हैं। चक्रवर्ती तीर्थंकर इससे बड़ा और मान का हनन क्या होगा ? साधना वही है जो अपने मान को समाप्त कर दे।
    23. जब आत्मतत्व के प्रति बहुमान प्राप्त हो जाता है तब मान के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता।
    24. मान को जीतने की आंतरिक साधना महत्वपूर्ण है।
    25. ख्याति, लाभ, पूजा एवं यशकीर्ति को छोड़ना बहुत कठिन है, ये संसारी प्राणी क्या कीर्तिकीर्तन कर पावेंगे, इन्हें हमारा वास्तविक स्वभाव ज्ञात ही नहीं है।
    26. मान के लिए, तुलना के लिए दूसरा पदार्थ आपेक्षित होता है लेकिन आत्मा के लिए, स्वभाव में आने के लिए पर पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती। मान द्वंद पैदा करता है।
    27. आठ चीजों (ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, तप, रूप और ऐश्वर्य) को लेकर मान हो सकता है यह विस्मय की नहीं अस्मय की बात है।
    28. वह अपना ही अस्तित्व समाप्त करना चाह रहा है, जो मान के कारण धर्मात्मा को नीचे दिखाना चाह रहा है। सम्यक दृष्टि ही स्व-पर के अस्तित्व को समझ सकता है, जिसे आत्मा के अस्तित्व के बारे में पहचान हो जाती है वह मान के पीछे क्यों भागेगा ?
    29. मानी मानव दूसरे पर डिपेन्ड रहना चाहता है, दूसरे पर डिपेन्ड जो आनंद है, उसे पाने वाला भिखारी है। मान से सुख नहीं मिलता, वह सुखा देता है। मैं बड़ा हूँ, यह भी एक चिंता है।
    30. ऐसा स्वाध्याय, तप-साधना आदि करें ताकि मान प्रमाण के रूप में परिवर्तित हो जावे।
    31. अभिमान करने का उद्देश्य अपने को बड़ा मानना है और दूसरे को छोटा मानना यह एक खतरनाक उद्देश्य है और यही हमारा अज्ञान है।
    32. अध्यात्म के क्षेत्र में दूसरे को छोटा मानने वाले का स्वागत नहीं है।
    33. यदि मान की एक भी तरंग है, लकीर है तो लकीर के फकीर माने जाते हैं।
    34. मान का मर्दन करने वाला वीर माना जाता है, वही बाद में हमारे सामने महावीर बनकर आता है।
    35. बालक अच्छे कपड़े पहन ले तो उसकी चाल ही बदल जाती है, यह मान का प्रतीक है।
    36. हे प्रभु ! आपने ऐसे कौन से शस्त्र का प्रयोग किया कि आपका मान प्रमाण बन गया ? अधूरापन समाप्त हो गया।
    37. छोटे, बड़े की मान्यता हमारे ही दिमाग की उपज है, प्रत्येक जीव का अस्तित्व अनादि अनिधन है।
    38. अधूरे व्यक्तियों के पास जाओगे तो मान खड़ा होगा ही इसलिए मान से बचना हो तो भगवान् के पास बैठ जाओ।
    39. हम कभी भी दूसरे को छोटा नहीं मानेंगे यह छोटा-सा व्रत ले लो। फिर मान अपने आप समाप्त हो जावेगा।
    40. दूसरे को छोटा मानना अस्तित्व गुण में दोष है।
    41. कष्टों को सहते हुए साधना करें, बहुत कुछ प्राप्त हो जावेगा, मान के साथ नहीं।
    42. अभिमान में अड़ जाने पर संघर्ष छिड़ जाता है।
    43. अभिमानी धर्म नहीं कर सकता, क्योंकि पाप का मूल अभिमान है |
    44. यदि आप अहंकार को छोड़ना चाहते हो तो, हमेशा-हमेशा रामायण का वाचन करते रहना चाहिए।
    45. लघु बने बिना दूसरे से प्रेरणा नहीं ली जा सकती और लघु बने बिना राघव नहीं बन सकते।
    46. नाम की तृष्णा, भूख एक प्रकार से हमें कर्तव्य से विमुख कर देती है।
    47. हे प्रभु! मुझे ऐसा पुण्य बंध न हो, जिससे में अभिमानी बन जाऊँ, मोक्षमार्ग ही छिन जाये।
    48. जिस साबुन से (दानादि से) कपड़ा साफ होता है, उससे कपड़ा (आत्मा) गंदा भी हो सकता है, अभिमान करने से। मान की तरंग उठने से अंतरंग बदल जाता है, मटमैला हो जाता है।
    49. लघुपना स्वीकारने से कषायों का शमन होता है। जिसके माध्यम से जीवन में विकास होता चला जाता है।
    50. पर्वत पर (बड़प्पन के पर्वत पर) चढ़ने से अहंकार की लू लग जाती है, नीचे रहने पर लू नहीं लगती।
    51. मानी की प्रेरणा संसार में भटकाने के लिये होती है और मानातीत दृष्टि वालों की प्रेरणा संसार से पार लगा देती है।
    52. मोहमार्ग वालों को मान अच्छा लगता है, श्रुत नहीं |
    53. मान की सामग्री मनुष्य ही सूघता है, जंगली प्राणी नहीं।
    54. आत्मा के स्वरूप के बारे में सोचोगे तो रूप का मद नहीं होगा।

    Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...