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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • क्षमा

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    क्षमा विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. क्रोध ही शत्रु है, उसे दांत किटकिटाते हुए बाहर कर दो।
    2. गुस्सा के ऊपर गुस्सा करने वाला कुछ कर सकता है पर गुस्सा करने वाले पर गुस्सा करने वाला कुछ नहीं कर पाता।
    3. क्रोधाग्नि स्व एवं पर दोनों को जला देती है।
    4. क्रोध के कारण से हम स्व को भूल जाते हैं।
    5. क्रोध एक बहुत बड़ा नशा है। जो व्यक्ति की बुद्धि को गाफिल कर देता है।
    6. राख के द्वारा अग्नि बुझती तो नहीं पर ढक अवश्य जाती है। उसी प्रकार क्रोध में उपयोग समाप्त तो नहीं होता किन्तु ढक अवश्य जाता है।
    7. आत्मानुभूति करने के लिए क्रोध को निकालना आवश्यक होता है।
    8. उत्तम क्षमा रखना ही पर्व मनाना है। मन का विजेता बनना ही पर्व का सार है।
    9. आज आपस में आप क्षमा को स्वीकार रहे हैं, इससे बड़ा और कोई धर्म नहीं होगा।
    10. क्षमा ऐसी वस्तु है, जिससे सारी ज्वलनशीलता समाप्त हो जाती है और चारों ओर हरियाली ही हरियाली दिखने लगती है।
    11. भगवान पार्श्वनाथ के जीव ने क्षमा रूपी महा शीतल धर्म के द्वारा ही सारी कठिनाईयों को सहा। क्योंकि वे इस बात को जानते थे कि अपने अपने कर्म का फल सभी भोगते हैं।
    12. अपने-अपने कर्म का फल भोगे संसार। एक खस टट्टी सींचता एक लेता बहार॥
    13. अगरबत्ती जलकर ही सुगंधी फैलाती है, हमको भी समता धारण करके आगे बढ़ना चाहिए महाभारत पढ़ने के बाद नवभारत के बारे में सोचें ? मैं कौन हूँ?
    14. सम्बन्ध क्या है? वात्सल्य के साथ निभाना बाद में तो टूटना ही है। यह सम्बन्ध नहीं, संयोग है उस दूध और पानी की भांति आप लोगों को रहना चाहिए।
    15. भगवान को छोड़कर सभी से गलती होती है।
    16. संसारी प्राणी बाहर से सब ठंडे हैं पर भीतर से सभी गरम हैं (क्रोध सत्व में है इस अपेक्षा से) ।
    17. इस जीवन में तापमान (क्रोध)पूर्णत: समाप्त नहीं हो सकता लेकिन भीतर रहते हुए भी बाहर तापमान (क्रोध) नहीं आने देना, यह एक महान् पुरुषार्थ है।
    18. क्रोध ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे हाथ में लेकर फेंक दो, बल्कि चाहो तो उसका उपयोग करने से रोका जा सकता है।
    19. वृद्धावस्था में भी क्रोध जीर्ण नहीं होता। चाहे वह आठ वर्ष का हो या अस्सी वर्ष का सभी में क्रोध भरा हुआ है, क्योंकि क्रोध कभी बूढ़ा नहीं होता।
    20. क्रोध अपने आप कुछ नहीं करता हम उस रूप परिणमन कर हो जाते हैं इसलिए वह अपना प्रभाव दिखा देता है।
    21. क्रोध के सत्व में बहुत ही शक्तिशाली बारूद भरी रहती है जिसका कभी भी विस्फोट हो सकता है।
    22. मान्यता मन में बनाये बिना क्रोध की प्रक्रिया प्रारम्भ नहीं हो सकती।
    23. विषैले शस्त्र कभी अपने आप नहीं चलते, चलाने वाले पर आधारित होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के पास फटाके(क्रोध) की दुकान है और वह स्वयं उसमें बैठकर चला रहा है। यदि विस्फोट हो गया तो पहले स्वयं जलेगा बाद में कोई जले भी या नहीं भी।
    24. कषाय को जीतना है तो क्षमा को धारण करो।
    25. साधुओं ने सबसे पहले संकल्प लिया है कि हम क्रोध रूपी बम का प्रयोग नहीं करेंगे। भीतर क्रोध होते हुए भी उसका प्रयोग नहीं करेंगे तो शांति का वातावरण बना रहेगा।
    26. जिस प्रकार माचिस बाक्स में रखी हुई तिल्लियाँ बरसात में काम नहीं करतीं हैं बल्कि सभी घिसकर समाप्त हो जातीं हैं, इसका कारण नमी, आद्रता है। ठीक उसी प्रकार हमारे भीतर कषायों की तिल्लियाँ भरी पड़ी हैं, हम बाहर का वातावरण क्षमा का बना लें तो कषायों की तिल्लियाँ उदय में आकर चली जावेगी, कोई हानि नहीं होगी।
    27. क्रोध रहित वीतराग मुद्रा के सामने सिंह भी अपना हिंसत्व छोड़कर उनके चरणों में बैठ जाता है क्योंकि मान्यता के ऊपर ही क्रोध की उत्पत्ति होती है, क्रोध का विस्फोट मान्यता पर आधारित है।
    28. यदि कोई अपने ऊपर बरस (गरज) रहा है तो यह मेरे ऊपर नहीं गरज रहा है, यह तो अज्ञानी है ऐसी मान्यता बना लो। क्रोध बाहर नहीं आवेगा और आपने इसकी विपरीत मान्यता बना ली तो आप अज्ञानी हो गये।
    29. क्रोध छोड़ने की भूमिका यही है कि अपनी विपरीत मान्यता को बदलिए।
    30. अज्ञान दशा में किए गए कार्य ज्ञान दशा में क्षमा करने योग्य होते हैं।
    31. स्वभाव को भूलने वाला ही क्रोध कर सकता है। क्रोध हमारा स्वभाव नहीं है, इस विश्वास को मूर्तरूप देते जाओ, धीरे-धीरे क्रोध पर विजय प्राप्त होती जावेगी।
    32. ज्ञानी के पास सदा स्वाभिमान रहता है। वह क्रोध में, उतावली में कभी अनुचित कार्य नहीं कर सकता ।
    33. संघर्ष से जल में भी अग्नि उत्पन्न हो जाती है।
    34. जब बादल जल से नहीं जलन से भरे होते हैं, तब आपस में संघर्ष कर लेते हैं तो व्रजपात हो जाता है।
    35. क्रोध का तूफान स्वयं एवं पर दोनों को उड़ा ले जाता है।
    36. हमारे परिणामों में यह क्षमता है कि हम सभी को जीत सकते हैं और चाहें तो सभी हमारे विरोधी हो सकते हैं।
    37. जिन वस्तुओं से क्रोध (कषायादि) उत्पन्न होते हैं, उन्हें पहले ही त्याग कर देना चाहिए।
    38. मान लो क्रोध रूपी अग्नि लग गयी है तो पानी डालो, पानी नहीं है तो धूल डालो, धूल नहीं डाल सकते तो अग्नि से ईधन का सम्पर्क तो हटा सकते हो। फिर अग्नि धीरे-धीरे स्वत: शांत हो जावेगी।
    39. क्रोध करना अज्ञान का ही प्रतीक है, उस समय अपने को अज्ञानी समझना चाहिए।
    40. क्रोध रूपी अज्ञान को नष्ट करने के लिए क्षमा रूपी शस्त्र ही उपयोगी है।

    Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव


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