Jump to content
सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • कर्म

       (0 reviews)

    कर्म विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. कर्म क्षय स्वाश्रित है, लेकिन कर्म बंध कथञ्चित् पराश्रित है। दूसरे का निमित्त कथञ्चित् कर्म बंध में आपेक्षित रहता है, किन्तु मोक्षमार्ग में मात्र आप ही रहते हैं।
    2. फिल्म की रील कर्म है और पर्दे पर चित्र नोकर्म हैं। कर्म के अनुरूप ही नोकर्म की व्यवस्था होती है।
    3. ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से ही ज्ञान होता है, मात्र पढ़ने से नहीं।
    4. कर्मोदय में गलत कार्य न करना चाहें तो भी करना ही पड़ते हैं, जैसे नरक में अशुभ विक्रिया न करना चाहें तो भी करना ही पड़ती है।
    5. जिनके माध्यम से अशुभ कर्म का बंध होता है, आत्महितैषी को उनसे हमेशा बचना चाहिए।
    6. आयु कर्म उस बाँटल में समान है, जो बूंद-बूंद से खाली हो जाती है।
    7. यदि कर्म के भरोसे बैठे रहना होता तो प्रभु कर्म निर्जरा का उपदेश क्यों देते ?
    8. राग-द्वेष नहीं करोगे तो कर्म बंध नहीं होगा, ऐसा भगवान् ने देखा, जाना और अनुभव किया है। तभी तो उन्होंने संयम से अनुराग किया था और हम लोगों को भी राग-द्वेष छोड़ने का उपदेश दिया है।
    9. यदि कर्म के उदय में सब कुछ हो जायेगा ऐसा सोचकर पुरुषार्थ नहीं करोगे तो कर्म निर्जरा कैसे करोगे ? भगवान् ने हमें तप के माध्यम से कर्म निर्जरा करने का उपदेश दिया है।
    10. संसारी प्राणी की सारी क्रियाएँ कर्म सापेक्ष ही हुआ करती हैं। दुख, शोक, ताप, आक्रन्दन से असाता कर्म का बंध होता है।
    11. आयु कर्म की हानि का नाम ही मरण है, इसी का नाम जीवन है, दीपक प्रकाशित हो रहा है कि तेल जल रहा है, इसे समझने का प्रयास करो। कलम (पेन) चल रही है कि स्याही खत्म हो रही है, इसे समझने का प्रयास करो। दिन अस्त होने से पहले प्रबंध कर लो वरन् इस संसार रूपी जगल में भटक जाओगे।
    12. नोकर्म के कारण भावों में गिरावट आ जाती है, इसलिए शरीर आदि नौ कर्मों को स्मृति में मत लाओ और भावों को पुन: स्थिर कर लो।
    13. कर्मों की खेती कहाँ से होती है, उस खेती को समाप्त कैसे किया जा सकता है ? इन्हें पैदा करने वाले दुर्भाव को नष्ट कर दो।
    14. जो कर्म काटने की कला को अपनाता है, वही तत्ववित् कहलाता है।
    15. संसार में दो भूत खतरनाक हैं, पर द्रव्य कर्तृत्व और निमित्ताधीनता। जो इन दोनों से बच जाता है, वही कर्म बंध से बच सकता है।
    16. कर्म के न्यायालय में जब कर्म न्याय करता है तो उस समय घूसखोरी नहीं चलती, वहाँ तो "जैसी करनी वैसी भरनी" का सिद्धान्त लागू होता है।
    17. जो-जो भाव कर्मों के क्षय से आत्मा में होते हैं, वे सब सादि अनंत होते हैं, कभी नष्ट नहीं होते। जैसे क्षायिक सम्यकदर्शन, क्षायिक ज्ञानादि।
    18. कर्मों की कठिनता यदि लता के बराबर हो जाये तो फिर कोई कठिनाई नहीं।
    19. कषाय ही कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति बंध का कारण है।
    20. आठ कर्मों में मात्र वेदनीय (साता-असाता) कर्म का ही अनुभव होता है।
    21. कर्मों की बाढ़ में तैराक भी बह जाते हैं, इसलिए आत्मा का रसास्वादन दुर्लभ है।
    22. कर्म के पास इतनी शक्ति नहीं है कि आत्मा की शक्ति को पूर्ण रूप से मिटा सके, इसलिए सभी जीवों में सामान्य रूप से ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम पाया जाता है।
    23. कर्म के उदय में हर्ष-विषाद नहीं करना कर्म फल चेतना है।
    24. कर्मों का उपादान कारण आत्मा ही है, लेकिन ये स्वभाव नहीं है।
    25. कर्मों के वेग में भी युक्ति पूर्वक बचा जा सकता है, वेग में तैराकी जैसी कुशलता चाहिए। गाड़ी चालक भी वेगवान गाड़ी को युक्ति से साइड करते हुए गति धीरे-धीरे कम करता जाता है।
    26. गति, आयु, पुण्य रूप नहीं हैं तो सारे पुण्य रूप नामकर्म पाप रूप ही हो जाते हैं।

    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...