काम विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- काम कभी भी पीड़ा का हनन नहीं करता, बल्कि वह पीड़ा को और बढ़ा देता है, इसलिए जो पीड़ा देता है, उसे हम तप के द्वारा नष्ट कर सकते हैं।
- काम की पीड़ा को जीव सहन कर लेता है, लेकिन तप से जो पीड़ा होती है, उससे भय खाता है।
- जो तप के माध्यम से काम वासना का दहन कर देता है, उसे समाप्त कर देता है, वह विवेकी माना जाता है।
- काम का दहन नि:संग अवस्था में ही संभव है, क्योंकि वस्त्र की ओट में तो काम जीता रहता है।
- काम ने तीन लोक को वश में कर लिया है और जो उस काम को जीत लेता है, वह महान् योद्धा है।
- काम रूपी अग्नि को सम्यकज्ञान रूपी अमृत की एक बूंद समाप्त कर देती है।
- गर्मी की अपेक्षा सर्दी में जलाने की क्षमता अधिक होती है।
- कमल वन लू से नहीं जलता बल्कि सर्दी में तुषार से जल जाता है, वैसे ही क्रोध से नहीं बल्कि काम के वेग से सब कुछ जल जाता है।